सूत्रों से मिली खबर के अनुसार जलवायु परिवर्तन और भूवैज्ञानिक बदलावों के बीच मानसून की अनोखी यात्रा ने वैज्ञानिकों को चौंकाया।
नई दिल्ली 6 सितंबर 2025।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग और अंतरराष्ट्रीय मौसम वैज्ञानिकों ने एक अभूतपूर्व घटना की पुष्टि की है।
दक्षिण-पश्चिम मानसून ने पहली बार तिब्बत के ऊंचे पठारी क्षेत्रों को पार किया है। यह घटना मौसम विज्ञान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ मानी जा रही है,
क्योंकि तिब्बत का उच्च ऊंचाई वाला क्षेत्र, जिसे “विश्व की छत” कहा जाता है, सामान्य रूप से मानसून की पहुंच से बाहर रहा है।
इस ऐतिहासिक बदलाव ने जलवायु परिवर्तन, क्षेत्रीय मौसम पैटर्न, और पर्यावरणीय प्रभावों पर नए सवाल खड़े किए हैं।
दक्षिण-पश्चिम मानसून, जो सामान्य रूप से मई-जून में भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश करता है और सितंबर तक सक्रिय रहता है,
इस बार असामान्य रूप से शक्तिशाली और व्यापक रहा। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, मानसून ट्रफ (निम्न दबाव का क्षेत्र) ने इस साल असाधारण रूप से उत्तर की ओर खिसकते हुए।
हिमालय की ऊंची चोटियों को पार किया और तिब्बत के कुछ हिस्सों में वर्षा दर्ज की गई। यह पहली बार है जब मानसून की हवाओं ने तिब्बत पठार के इतने बड़े क्षेत्र को प्रभावित किया है।
आई एम डी के महानिदेशक डॉ. मृत्युंजय महापात्र ने कहा, “यह एक ऐतिहासिक घटना है।
तिब्बत का पठारी क्षेत्र, जो औसतन 4,500 मीटर की ऊंचाई पर है, सामान्य रूप से मानसून की गतिविधियों से अछूता रहता है।
लेकिन इस बार, मजबूत निम्न दबाव प्रणालियों और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण मानसून की हवाएं और वर्षा तिब्बत तक पहुंची हैं।
मौसम वैज्ञानिकों ने इस असामान्य घटना के लिए कई कारकों को जिम्मेदार ठहराया है।
जैसे जलवायु परिवर्तन: वैश्विक तापमान में वृद्धि और समुद्री सतह के तापमान में बदलाव ने मानसून की गतिशीलता को प्रभावित किया है।
बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में असामान्य रूप से गर्म समुद्री सतह ने मानसून की हवाओं को अधिक नमी और गति प्रदान की, जिससे वे हिमालय की ऊंची दीवार को पार करने में सक्षम हुईं।
मानसून ट्रफ का उत्तर की ओर खिसकना: इस साल मानसून ट्रफ, जो सामान्य रूप से भारत के उत्तरी मैदानों और हिमालय की तलहटी तक सीमित रहता है, असामान्य रूप से उत्तर की ओर बढ़ा।
यह ट्रफ तिब्बत के दक्षिणी हिस्सों तक पहुंच गया, जिसके परिणामस्वरूप ल्हासा और अन्य क्षेत्रों में हल्की से मध्यम बारिश दर्ज की गई।
वही वाडिया इंस्टिट्यूट भूवैज्ञानिक संस्था की टीम हिमालय के जास्कर की पहाड़ियों में शोध कर रही है।
उन्हें में से एक भूवैज्ञानिक मनीष मेहता बता रहे हैं कि ऐसा पहली बार हुआ है जब मानसून की हवाई हिमालय को चीरकर तिब्बती की ओर जा रही हैं।
वही वैज्ञानिकों के अनुसार तिब्बती पठार का ऊंचा भूभाग सामान्य रूप से मानसून की हवाओं को रोकता है।
लेकिन इस बार, मजबूत पछुआ हवाओं और निम्न दबाव प्रणालियों ने इन हवाओं को पठार के ऊपर ले जाने में मदद की।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि पश्चिमी विक्षोभ ने मानसून की हवाओं के साथ मिलकर तिब्बत में वर्षा को बढ़ावा दिया।
यह एक दुर्लभ संयोग है, क्योंकि पश्चिमी विक्षोभ सामान्य रूप से सर्दियों में सक्रिय होते हैं।
ऐसे में तिब्बत के कुछ हिस्सों, विशेष रूप से दक्षिणी और पूर्वी क्षेत्रों में, हल्की से मध्यम बारिश की खबरें आई हैं।
ल्हासा और शिगात्से जैसे क्षेत्रों में स्थानीय लोगों ने असामान्य मौसम की सूचना दी।
हालांकि, तिब्बत का शुष्क और ठंडा जलवायु क्षेत्र इस तरह की वर्षा के लिए तैयार नहीं है, जिसके कारण कुछ क्षेत्रों में बाढ़ और भूस्खलन की आशंका बढ़ गई है।
कैलाश मानसरोवर यात्रा, जो तिब्बत के पश्चिमी हिस्सों से होकर गुजरती है, इस मानसून के कारण बाधित हुई है।
ट्रेकिंग एजेंसीज़ एसोसिएशन ऑफ नेपाल (TAAN) ने बताया कि भारी बारिश और बाढ़ के कारण यात्रा मार्ग पर दो महत्वपूर्ण पुल बह गए, जिससे सैकड़ों तीर्थयात्री फंस गए।
भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) ने 413 यात्रियों को सुरक्षित निकाला।
पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव
इस असामान्य मौसमी घटना के कई संभावित प्रभाव हो सकते हैं:
कृषि और जल संसाधन: तिब्बत में बारिश की यह घटना स्थानीय कृषि और जल संसाधनों को प्रभावित कर सकती है।
हालांकि, तिब्बत का पारिस्थितिकी तंत्र इस तरह की नमी के लिए अनुकूलित नहीं है, जिससे मिट्टी का कटाव और बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है।
जलवायु परिवर्तन पर बहस: यह घटना जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर वैश्विक बहस को और तेज कर सकती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अनियोजित निर्माण, जंगलों की कटाई, और तिब्बत में चीन द्वारा कथित तौर पर जहरीले कचरे का डंपिंग,
इस क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र को और कमजोर कर रहा है, जिससे ऐसी असामान्य मौसमी घटनाएं बढ़ रही हैं।
क्षेत्रीय मौसम पैटर्न में बदलाव: तिब्बत में मानसून की पहुंच का मतलब है कि हिमालयी क्षेत्र और भारतीय उपमहाद्वीप के मौसम पैटर्न में दीर्घकालिक बदलाव हो सकते हैं।
इससे भारत, नेपाल, और भूटान जैसे देशों में बाढ़ और सूखे की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
वैज्ञानिकों की प्रतिक्रिया
वैज्ञानिक इस घटना को जलवायु परिवर्तन के एक स्पष्ट संकेत के रूप में देख रहे हैं। डॉ. रॉक्सी मैथ्यू कोल, भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) की एक वरिष्ठ वैज्ञानिक, ने कहा,
“मानसून का तिब्बत तक पहुंचना एक चेतावनी है। हमें अपने मौसम मॉडल को फिर से जांचने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को गंभीरता से लेने की जरूरत है।”
चीन के मौसम वैज्ञानिक भी इस घटना का अध्ययन कर रहे हैं। दक्षिण चीन सागर से प्राप्त तलछट रिकॉर्ड और तिब्बती पठार के जीवाश्म अध्ययनों से पहले ही संकेत मिले थे।
कि मानसून की उत्पत्ति 15-20 मिलियन वर्ष पहले तिब्बती उत्थान से जुड़ी थी। इस बार की घटना उस प्राचीन इतिहास को फिर से जीवंत करती है।
आईएमडी और अन्य वैश्विक मौसम एजेंसियां इस घटना पर नजर रख रही हैं।
अगले कुछ हफ्तों में तिब्बत में और बारिश की संभावना जताई जा रही है, हालांकि यह भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून की वापसी के साथ कम हो सकती है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरह की घटनाएं भविष्य में और बार-बार हो सकती हैं, क्योंकि जलवायु परिवर्तन मौसम की गतिशीलता को बदल रहा है।
भारत सरकार ने हिमालयी क्षेत्रों में बाढ़ और भूस्खलन से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन योजनाओं को और मजबूत करने का फैसला किया है।
साथ ही, तिब्बत में पर्यावरणीय बदलावों पर नजर रखने के लिए भारत और चीन के बीच सहयोग की जरूरत पर भी जोर दिया जा रहा है।