नैनीताल 11 जुलाई 2025। उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर नैनीताल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है, जिसने चुनावी सरगर्मी को और तेज कर दिया है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जिन उम्मीदवारों के नाम नगर निकाय और ग्राम पंचायत की वोटर लिस्ट में दोनों जगह दर्ज हैं, वे पंचायत चुनाव नहीं लड़ सकेंगे।
इस फैसले ने नामांकन वापसी के अंतिम दिन उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों में खलबली मचा दी है। हाईकोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग की उस दलील पर भी स्टे लगा दिया है,
जिसमें दोहरी वोटर लिस्ट वाले उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने की अनुमति देने की बात कही गई थी। इस निर्णय से पंचायत चुनाव की प्रक्रिया में एक नया मोड़ आ गया है।
मामले की पृष्ठभूमि उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं। पहला चरण 24 जुलाई और दूसरा चरण 28 जुलाई को प्रस्तावित है।
इस बीच, समाजसेवी शक्ति सिंह बर्त्वाल द्वारा दायर एक जनहित याचिका ने हाईकोर्ट का ध्यान इस ओर खींचा कि कई उम्मीदवारों के नाम नगर निकाय और ग्राम पंचायत की वोटर लिस्ट में एक साथ दर्ज हैं।
याचिकाकर्ता ने इसे पंचायती राज अधिनियम की धारा 9 की उप-धारा 6 और 7 का उल्लंघन बताया। याचिका में तर्क दिया गया कि देश में किसी भी राज्य में दो अलग-अलग मतदाता सूचियों में नाम दर्ज होना आपराधिक श्रेणी में आता है।
हाईकोर्ट की डबल बेंच, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा शामिल थे, ने इस मामले की सुनवाई की।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक व्यक्ति केवल एक ही क्षेत्र (नगर या ग्रामीण) की वोटर लिस्ट में शामिल हो सकता है और उसी क्षेत्र से चुनाव लड़ सकता है।
दोहरी वोटर लिस्ट को पंचायती राज अधिनियम के खिलाफ माना गया, जिसके आधार पर कोर्ट ने ऐसे उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोकने का आदेश दिया।
हाईकोर्ट का आदेश और उसका प्रभाव नैनीताल हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि दोहरी वोटर लिस्ट में नाम होने की स्थिति गैरकानूनी है, और ऐसे उम्मीदवारों को पंचायत चुनाव में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग की उस दलील को खारिज कर दिया, जिसमें आयोग ने कहा था कि दोहरी वोटर लिस्ट वाले उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी जा सकती है।
इस दलील पर स्टे लगाते हुए कोर्ट ने आयोग को ऐसे उम्मीदवारों के नामांकन की जांच करने और नियमानुसार कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
इस आदेश के बाद उन उम्मीदवारों में हड़कंप मच गया है, जिनके नाम दोनों वोटर लिस्ट में शामिल हैं। कई उम्मीदवारों के नामांकन पहले ही रद्द हो चुके हैं, जबकि कुछ को स्वीकृति मिल गई थी, जिसे अब दोबारा जांचा जाएगा।
नामांकन वापसी का अंतिम दिन होने के कारण यह फैसला उम्मीदवारों के लिए और भी महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि अब उनके पास अपने नामांकन को बचाने का समय नहीं बचा है।
राज्य निर्वाचन आयोग के समक्ष चुनौतियां हाईकोर्ट के इस आदेश ने राज्य निर्वाचन आयोग के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। आयोग को अब उन सभी उम्मीदवारों की वोटर लिस्ट की जांच करनी होगी,
जिनके नाम नगर निकाय और ग्राम पंचायत की सूचियों में दर्ज हैं। आयोग के सचिव राहुल गोयल ने पहले ही सभी जिला निर्वाचन अधिकारियों को उत्तराखंड पंचायती राज एक्ट 2016 के तहत कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा था।
हालांकि, कोर्ट के ताजा आदेश के बाद आयोग को अपनी प्रक्रिया को और सख्त करना होगा।आयोग के अध्यक्ष सुशील कुमार ने कहा कि नियमानुसार, केवल वही व्यक्ति पंचायत चुनाव में भाग ले सकता है, जिसका नाम संबंधित वोटर लिस्ट में हो।
दोहरी वोटर लिस्ट की शिकायत मिलने पर रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ) स्तर पर जांच की जाती है, और तथ्यों के आधार पर कार्रवाई होगी। लेकिन हाईकोर्ट के सख्त रुख के बाद आयोग पर दबाव बढ़ गया है कि वह इस मुद्दे को तुरंत हल करे।
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया – इस फैसले ने राजनीतिक दलों में भी हलचल मचा दी है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने पहले ही इस मुद्दे पर राज्य निर्वाचन आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी।
पार्टी का आरोप था कि कई जिलों में पंचायत चुनाव की वोटर लिस्ट में ऐसे नाम शामिल हैं, जो पहले निकाय चुनावों में भाग ले चुके हैं।
कांग्रेस ने इसे नियमों का उल्लंघन बताते हुए कार्रवाई की मांग की थी।वहीं, सत्तारूढ़ भाजपा ने इस मामले पर सतर्क रुख अपनाया है।
पार्टी का कहना है कि वह कोर्ट के आदेशों का सम्मान करती है और पंचायती राज व्यवस्था को संविधान के अनुरूप लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है।
याचिकाकर्ता का पक्ष – याचिकाकर्ता शक्ति सिंह बर्त्वाल ने अपनी जनहित याचिका में तर्क दिया कि दोहरी वोटर लिस्ट में नाम होना न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यह एक आपराधिक कृत्य भी है।
उन्होंने सवाल उठाया कि आयोग ने ऐसे उम्मीदवारों को नामांकन की स्वीकृति कैसे दे दी। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से मांग की थी कि इस तरह की अनियमितताओं पर सख्त कार्रवाई की जाए,
ताकि पंचायत चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से हो सकें।पहले भी रही हैं बाधाएं यह पहली बार नहीं है जब उत्तराखंड के पंचायत चुनावों पर हाईकोर्ट ने रोक लगाई हो।
इससे पहले 23 जून 2025 को भी कोर्ट ने आरक्षण नियमावली के अधिसूचित न होने के कारण चुनाव प्रक्रिया पर स्टे लगा दिया था। हालांकि, बाद में 27 जून को कोर्ट ने यह रोक हटा ली थी,
और आयोग को तीन दिन बाद नया चुनावी कार्यक्रम जारी करने का निर्देश दिया था।इसके अलावा, अतिक्रमणकारियों के वोटिंग अधिकार और वोटर लिस्ट से उनके नाम हटाने के मुद्दे पर भी कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया था।
कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 239 के तहत वोट देने का अधिकार सभी को है, और इसे न तो सरकार और न ही कोर्ट छीन सकता है।
आगे की राह हाईकोर्ट के इस ताजा फैसले के बाद पंचायत चुनाव की प्रक्रिया पर असर पड़ना तय है। आयोग को अब सभी उम्मीदवारों की वोटर लिस्ट की दोबारा जांच करनी होगी,
जिससे चुनावी प्रक्रिया में कुछ देरी हो सकती है। साथ ही, उन उम्मीदवारों को भी नुकसान उठाना पड़ सकता है, जिनके नामांकन पहले स्वीकृत हो चुके थे।
चुनावी की गहमागहमी के बीच नैनीताल जिले के तल्ला वर्धों गांव की एक अनूठी मिसाल भी सामने आई है, जहां पंचायत चुनावों में औपचारिक वोटिंग के बजाय सर्वसम्मति या टॉस से ग्राम प्रधान चुना जाता है।
यह गांव देशभर में लोकतंत्र की एक प्रेरणादायक मिसाल पेश करता है।
निष्कर्ष – नैनीताल हाईकोर्ट का यह फैसला उत्तराखंड के पंचायत चुनावों में निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
दोहरी वोटर लिस्ट वाले उम्मीदवारों पर रोक लगने से न केवल नियमों का पालन होगा, बल्कि मतदाताओं का विश्वास भी बढ़ेगा।
हालांकि, इस आदेश ने राज्य निर्वाचन आयोग के सामने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं, जिन्हें जल्द से जल्द हल करना होगा ताकि पंचायत चुनाव निर्धारित समय पर हो सकें