आयुर्वेद में बताया गया है शिलाजीत का महत्व

देहरादून – न सोऽस्ति रोगो भुवि साध्यरूपः शिलाह्वयं यं न जयेत् प्रसह्य।

अर्थात् दुनिया में कोई ऐसा रोग नहीं है जो शिलाजीत से ठीक नहीं होता हो। क्योंकि शिलाजीत का रिप्रोडक्टरी सिस्टम से लेकर रेस्पिरेटरी सिस्टम तक प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। अर्थात् इससे स्पर्म काउंट बढ़ता है व अन्य यौन विकार दूर होते हैं। मूत्र संस्थान की विकृतियां मिटती हैं। साथ ही पाचन संस्थान को भी संतुलित करके यकृत् व अग्न्याशय के विकारों को दूर करने में यह उपयोगी है। हड्डियों एवं मांसपेशियों को सुदृढ़ करके स्केलिटल सिस्टम व सर्क्युलेटरी सिस्टम को ठीक कर शरीर का ट्रांस्पोर्टेशन पूरी तरह ठीक कर देता है एवं फेफड़ों को ताकत देकर शिलाजीत रेस्पिरेटरी सिस्टम की तमाम बीमारियों को दूर का देता है। जब ये छह सिस्टम ठीक से कार्य करते हैं तो हमारा ऑटोनॉमिक व वोलन्टरी नर्वस सिस्टम भी नियन्त्रित रहता है। इसी प्रकार शरीर की सम्पूर्ण अन्त:प्रणाली जब संतुलित रहती है तो अन्तःस्रावी ग्रंथियाँ अर्थात् हमारा इन्डोक्राइन सिस्टम भी ठीक रहता है। इस प्रकार परोक्ष रूप से शिलाजीत आठों सिस्टममें को ऊर्जा व आरोग्य देता है। अतः अकेले शिलाजीत सब रोगों को ठीक करता है। शिलाजीत की तरह ही अन्य भी आयुर्वेद की एक-एक औषध व एक-एक जड़ी-बूटी अनेकों रोगों को दूर करती हैं। ऐलोपैथी में ऐसा नहीं है। वहां प्रत्येक रोग की अलग दवा है क्योंकि वह दवा कुछ लक्षणों को नियन्त्रित करती है।  जोकि सिस्टम पर काम नहीं करती इसलिए ऐलोपैथी की एक दवा अनेक रोगों पर काम नहीं करती। योग व आयुर्वेद लाक्षणिक चिकित्सा न करके कारण का निवारण करती हैं। मूल को ठीक करते हैं, मूलाधार से लेकर सहस्रार तक अष्टचक्र या आठ सिस्टमों को स्वस्वथ व ऊर्जावान् बनाते हैं। बस यही सैद्धांतिक भेद है, हमारी परम्परागत प्राचीन चिकित्सा पद्धति व अर्वाचीन चिकित्सा पद्धति में। इसलिए दोनों चिकित्स विधाओं का दर्शन ही अलग-अलग है। अतः चिकित्सा को लेकर मतभेदों को मिटाना है तो अज्ञान, आग्रह, स्वार्थ व अहंकार से ऊपर उठकर दोनों चिकित्सा विधाओं की सैद्धान्तिक मान्यताओं को ठीक से समझना होगा और रोग से ग्रस्त गनुष्य के लिए जो चिकित्सा विधा श्रेयस्कर है, उसे आग्रह होकर स्वीकार  करना होगा। जीवनरक्षक प्रणाली, शल्यचिकिया,आपात चिकित्सा  एवं टी.बी. व मलेरियादि चिकित्सा आवश्यकताओं में ऐलोपैथी चिकिल्या उत्कृष्ट है। साथ ही रोग निदान के क्षेत्र में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने श्रेष्ठ कार्य किया है। दूसरी तरफ शरीर की अन्त:प्रणाली को योग में आयुर्वेद से ठीक करके अस्थमा, उच्च  रक्तचाप , आर्थराइटिस, डिप्रेशन, माइग्रेन का दर्द, यकृत, वृक्क व आन्त्ररोग तथा हदयरोग आदि जीर्ण रोगों से पूर्णतः मुक्त हो सकते हैं। इस प्रकार योग व आयुर्वेद के ज्ञान का उपयोग विश्व कल्याण के उद्देश्य से करने के लिये सभी को अवश्य ही आगे आना चाहिए। रोगी का हित सर्वोपरि है। सभी  को अपने वैयक्तिक व्यावसायिक हितों से ज्यादा रोगीहित को प्राथमिकता देनी चाहिए।

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