उत्तराखंड बेरोज़गार संघ ने आउटसोर्सिंग एजेंसियों के माध्यम से प्रदेश में हो रही बैकडोर नियुक्तियों के नियमितीकरण को रोकने,
एवं उमा देवी बनाम कर्नाटक राज्य (10 अप्रैल 2006) के सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के निर्णय का अनुपालन न किए जाने के संबंध में प्रेस वार्ता को संबोधित किया।
उत्तराखंड बेरोज़गार संघ के अध्यक्ष राम कंडवाल ने कहा कि प्रदेश में उपनल, पीआरडी एवं अन्य आउटसोर्सिंग एजेंसियों के माध्यम से विभिन्न विभागों में निरंतर बैकडोर नियुक्तियाँ की जा रही हैं।
यह प्रक्रिया भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) एवं अनुच्छेद 16 (समान अवसर का अधिकार) के प्रत्यक्ष उल्लंघन के समान है।
राम कंडवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने उमा देवी बनाम कर्नाटक राज्य (10 अप्रैल 2006) के ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट रूप से कहा है कि,
सरकारी विभागों में अनियमित, अस्थायी या बैकडोर नियुक्तियों को नियमित करना न तो संविधानसम्मत है।
और न ही यह प्रक्रिया जारी रखी जानी चाहिए। कोर्ट ने बार-बार यह भी दोहराया कि सरकारी नियुक्तियाँ नियमित, पारदर्शी, प्रतियोगी परीक्षाओं एवं मेरिट आधारित प्रक्रिया से ही होंगी।
इसके बावजूद उत्तराखंड सरकार द्वारा उक्त निर्णय की भावना की निरंतर उपेक्षा की जा रही है और आउटसोर्सिंग एजेंसियों के माध्यम से असीमित प्रकार की नियुक्तियाँ कराई जा रही हैं।
इससे न केवल लाखों योग्य बेरोज़गार युवाओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन हो रहा है, बल्कि पारदर्शी भर्ती प्रणाली पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
राम कंडवाल ने कहा कि जिस उपनल का उद्देश्य भूतपूर्व सैनिकों का कल्याण करना था वह आज नेताओं के चहेतों को रोजगार उपलब्ध कराने का माध्यम बन गया है।
उत्तराखंड बेरोज़गार संघ के उपाध्यक्ष सुरेश सिंह ने कहा कि प्रदेश में उपनल, पीआरडी एवं अन्य आउटसोर्सिंग एजेंसियों के माध्यम से की जा रही।
सभी बैकडोर नियुक्तियों पर तत्काल रोक लगाई जाए, सभी विभागों में रिक्त पदों पर सीधी भर्ती UKSSC/UKPSC एवं अन्य वैधानिक भर्ती संस्थाओं के माध्यम से नियमित प्रक्रिया द्वारा अविलंब की जाए,
उमा देवी निर्णय (2006) का अक्षरशः पालन सुनिश्चित करने हेतु शासन स्तर पर स्पष्ट नीति जारी की जाए,
एवं सभी प्रस्तावित नियमितीकरण प्रक्रियाओं की समीक्षा करते हुए उन्हें सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप बनाया जाए,
तथा बेरोज़गार युवाओं के हित में पारदर्शी व समान अवसर वाली भर्ती प्रणाली को (जैसे– प्रतियोगी परीक्षाएँ, खुली विज्ञप्ति आदि) सुदृढ़ किया जाए।
सुरेश सिंह ने कहा कि उक्त विषय अत्यंत संवेदनशील एवं लाखों बेरोज़गार युवाओं के भविष्य से संबंधित है।
इसलिए सरकार को प्राथमिकता से संज्ञान लेकर आवश्यक कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए, जिससे न्याय,
पारदर्शिता एवं संविधान के मूल्यों के अनुरूप शासन व्यवस्था संचालित हो सके।
इस मौके पर उत्तराखंड बेरोज़गार संघ के प्रदेश महासचिव जे पी ध्यानी, प्रदेश प्रवक्ता नितिन बुड़ाकोटी एवं प्रदेश सहसंयोजक जसपाल चौहान इत्यादि मौजूद रहे।