उत्तराखंड को अलग राज्य बने 25 साल हो चुके हैं, लेकिन आम आदमी को सड़कों पर सुरक्षित और सुगम तरीके से चलने का अधिकार अभी तक पूरी तरह सुनिश्चित नहीं हो पाया है।
सड़क के किनारे बने फुटपाथ, जो पैदल यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं, अब दुकानदारों, रेहड़ी-पटरी वालों और कुछ स्थानीय निवासियों ने अपने घर के आगे फुटपाथ पर कब्ज़ा कर रखा हैं।
इसका ताजा उदाहरण देहरादून के जोगी वाला चौक से वैष्णो देवी मंदिर तक बने नए फुटपाथ पर देखने को मिल रहा है।
“फुटपाथ कब्जा,आम आदमी परेशान”
जोगी वाला चौक से वैष्णो देवी मंदिर तक बने नए फुटपाथ का उद्देश्य पैदल यात्रियों को सुरक्षित और आरामदायक आवागमन प्रदान करना था।
लेकिन इन फुटपाथ पर अब कुछ स्थानों पर घर के आगे बने फुटपाथ पर मकान मालिकों ने तो कुछ दुकानदारों ने अतिक्रमण कर लिया है।
फुटपाथ पर दुकानों का सामान, रेहड़ियां, और यहां तक कि कुछ बड़े पाइपों के रखे होने से पैदल चलने वालों के लिए जगह बेहद सीमित कर दिया है।
नतीजतन, राहगीरों को मजबूरन सड़क पर उतरना पड़ रहा है, जिससे दुर्घटना का खतरा बढ़ गया है।
“लोक निर्माण विभाग की चेतावनी बेअसर”
लोक निर्माण विभाग (PWD) ने इस क्षेत्र में अतिक्रमण के खिलाफ चेतावनी बोर्ड लगाए हैं, जिनमें साफ तौर पर फुटपाथ पर कब्जा न करने की हिदायत दी गई है।
लेकिन इन चेतावनियों का कोई खास असर होता नहीं दिख रहा। बोर्ड के ठीक आसपास ही दुकानदारों ने अपने सामान और रेहड़ियां सजा रखी हैं।
यह स्थिति न केवल प्रशासनिक लापरवाही को दर्शाती है, बल्कि स्थानीय लोगों और दुकानदारों की उदासीनता को भी उजागर करती है।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि फुटपाथ पर अतिक्रमण के कारण बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं को विशेष रूप से परेशानी हो रही है।
एक स्थानीय निवासी, रमेश ने बताया, “हमारे लिए सड़क पर चलना जोखिम भरा है। वही जोगीवाला चौक पर पुलिस व्यवस्था भी रहती है और ठीक चौक पर ही दुकानदारों ने फुटपाथ पर अपना कब्जा जमा रखा है।
और इसके इतर ई – रिक्शा चालकों ने सड़क पर कब्जा कर रखा है। सड़कों के दोनों किनारों पर फुटपाथ तो बनाए गए हैं,
लेकिन उसका उपयोग दुकानदारों ने अपनी दुकान बढ़ाने के लिए कर लिया है। प्रशासन को सख्ती से कार्रवाई करनी चाहिए।”
उत्तराखंड में अतिक्रमण कोई नई समस्या नहीं है। पहले भी कई बार सरकारी जमीन, वन क्षेत्रों और नदियों के किनारे अतिक्रमण हटाने के लिए अभियान चलाए गए हैं।
उदाहरण के तौर पर, 2023 में हरिद्वार में 30 साल पुरानी मजार और 50 साल पुराने मंदिर को अतिक्रमण के तहत ध्वस्त किया गया था।
इसके अलावा, वन भूमि पर 27 मंदिरों और 200 से अधिक मजारों को हटाने की कार्रवाई भी की गई थी। लेकिन फुटपाथ जैसे सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण को लेकर प्रशासन की ढिलाई बरकरार है।
फुटपाथ पर अतिक्रमण की समस्या को हल करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
नियमित निगरानी और कार्रवाई: लोक निर्माण विभाग, पुलिस और नगर निगम को नियमित रूप से फुटपाथ की जांच करनी चाहिए और अतिक्रमण करने वालों पर जुर्माना लगाना चाहिए।
साथ ही प्रशासन को जागरूकता अभियान के साथ स्थानीय लोगों और दुकानदारों को फुटपाथ के महत्व और इसके दुरुपयोग के नुकसान के बारे में जागरूक करने की जरूरत है।
वैकल्पिक व्यवस्था: रेहड़ी-पटरी वालों के लिए नगर निगम द्वारा वैकल्पिक स्थान या हॉकर जोन बनाए जा सकते हैं, ताकि उनकी आजीविका भी प्रभावित न हो।
सख्त कानूनी कार्रवाई: बार-बार चेतावनी के बावजूद अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।
जोगी वाला चौक से वैष्णो देवी मंदिर तक फुटपाथ पर अतिक्रमण की समस्या न केवल आम आदमी के अधिकारों का हनन है,
बल्कि यह शहर की सुंदरता और व्यवस्था को भी प्रभावित कर रही है। उत्तराखंड सरकार और स्थानीय प्रशासन को इस दिशा में तत्काल और प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।
जब तक फुटपाथ पैदल यात्रियों के लिए पूरी तरह सुरक्षित और उपयोगी नहीं होंगे, तब तक “देवभूमि” में आम आदमी को चलने का अधिकार अधूरा ही रहेगा।
यदि इस समस्या पर पाठकों का कोई सुझाव या अनुभव है, तो प्रशासन तक अपनी बात जरूर पहुंचाएं।
साथ ही, इस मुद्दे को और व्यापक बनाने के लिए इसे सोशल मीडिया पर साझा करें, ताकि जागरूकता फैले और समाधान की दिशा में कदम उठाए जा सकें।