Headlines

Workshop :- उत्तराखंड के संदर्भ में कार्बन क्रेडिट के संभावित अवसरों पर आयोजित हुई कार्यशाला

देहरादून 24 जुलाई 2025।

सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी एण्ड गुड गवर्नेंस (CPPGG), नियोजन विभाग ने गुरूवार को एक होटल में हरित उत्तराखण्ड़ की संभावनाओं के दृष्टिगत कार्बन क्रेडिट के संभावित अवसरों पर ’’कार्बन क्रेडिट पोटेंशियल अपॉर्चुनिटी फॉर उत्तराखण्ड़’’ विषयक कार्यशाला आयोजित की गई।

कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए प्रमुख सचिव, नियोजन, डॉ0 आर0 मीनाक्षी सुन्दरम् ने शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने पर बल देते हुए कहा कि सभी विभागों को कार्बन क्रेडिट तंत्र के बारे में जागरुक होना आवश्यक है,

ताकि राज्य के वित्तीय संसाधनों में वृद्धि के साथ ही कार्बन क्रेडिट सम्बन्धी गतिविधियों में संलग्न व्यक्तियों को भी यथोचित लाभ प्राप्त हो सके।

डॉ0 सुन्दरम् द्वारा वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 50 प्रतिशत तक कम करने तथा वर्ष 2070 तक शून्य उत्सर्जन को प्राप्त करने,

व इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और नवीकरणीय ऊर्जा नीतियों का क्रियान्वयन तथा कार्बन क्रेडिट पर राज्य में संस्थागत उपायों के सृजन पर जोर दिया।

उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड के अध्यक्ष डॉ0 सुबुद्धि ने कार्बन बाजारों से जुड़े आर्थिक और सामाजिक-पर्यावरणीय जोखिम और लाभ,

तथा इस दिशा में स्वैच्छिक कार्बन विपणन हेतु प्रस्ताव तैयार करने हेतु विशेषज्ञों का सहयोग लेने की आवश्यकता पर बल दिया।

साथ ही इस कार्य हेतु स्पेशल पर्पज व्हीकल (SPV) बनाये जाने का आग्रह किया।

कार्यशाला के उद्देश्यों की जानकारी देते हुए डॉ0 मनोज कुमार पन्त, अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी, सी0पी0पी0जी0जी0 द्वारा उत्तराखंड में कार्बन क्रेडिट की संभावनाओं का लाभ उठाने हेतु प्राथमिकता के आधार पर राज्य का वन आवरण,

नवीकरणीय ऊर्जा, जैविक कृषि को बढ़ावा आदि सहित विभागों के क्षमता विकास, ईको सिस्टम सेवाओं हेतु विश्वसनीय डाटा पर ध्यान केंद्रित करने पर जोर दिया गया।

 कार्यशाला के विभिन्न तकनीकी सत्रों यथा उत्तराखण्ड में कॉर्बन मार्केट हेतु संस्थागत तथा पॉलीसी फ्रेमवर्क का विकास,

स्वैच्छिक कॉर्बन मार्केट हेतु रणनीति, फारेस्ट्री, एग्रो फारेस्ट्री, ऊर्जा, अपशिष्ट प्रबंधन आदि क्षेत्रों पर पैनल डिस्कशन तथा केस स्टडी प्रस्तुत की गयी।

 कार्यशाला में टोनी ब्लेयर इंस्टीटयूट, CEEW, GIZ, ONGC, BIS, SUVIDHA, TERI, कॉर्बन बिज़नैस, देसाई एसोसिएट आदि जैसे राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय संस्थानों के विषय विशेषज्ञों के साथ-साथ उत्तराखण्ड राज्य के वन,

परिवहन, शहरी विकास, ग्राम्य विकास, उद्यान, पशुपालन इत्यादि विभागों के अधिकारियों द्वारा भी प्रतिभाग किया गया।

ये भी पढ़ें:   Effect :- बांध परियोजनाओं को बताना होगा, पानी छोड़ने का प्रभाव कितना होगा -सुमन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *