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Rare blood group:- भारत में मिला विश्व का सबसे दुर्लभ रक्त समूह “सीआरआईबी”

देहरादून 4 अगस्त 2025।

रक्ताधान चिकित्सा के क्षेत्र में एक अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल हुई है। भारत और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक नए और अत्यंत दुर्लभ रक्त समूह की पहचान की है,

जिसे CRIB नाम दिया गया है। इस खोज को गहन देखभाल, प्रसवपूर्व निदान और वैश्विक रक्तदान प्रोटोकॉल को बेहतर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

यह ऐतिहासिक खोज बेंगलुरु के निकट कोलार जिले की एक 38 वर्षीय महिला के मामले से सामने आई, जब उनकी हृदय शल्य चिकित्सा के दौरान उनका रक्त सामान्य O-पॉजिटिव रक्त इकाइयों के साथ असंगत पाया गया।

इस असामान्य स्थिति ने चिकित्सकों को हैरान कर दिया, क्योंकि उनकी रक्त जांच में एक अनजान एंटीजन की मौजूदगी पाई गई।

मामले को रोटरी बेंगलुरु TTK ब्लड सेंटर और बाद में यूनाइटेड किंगडम के इंटरनेशनल ब्लड ग्रुप रेफरेंस लैबोरेटरी (IBGRL) को भेजा गया।

दस महीने की गहन शोध और आणविक परीक्षण के बाद, इस नए एंटीजन को क्रोमर (CR) रक्त समूह प्रणाली का हिस्सा माना गया और इसे CRIB नाम दिया गया,

जिसमें ‘CR’ क्रोमर और ‘IB’ भारत, बेंगलुरु का प्रतीक है।

CRIB रक्त समूह की खासियत यह है कि इसमें अधिकांश लोगों में पाया जाने वाला एक सामान्य एंटीजन अनुपस्थित है।

इसकी वजह से CRIB रक्त समूह वाले व्यक्तियों के लिए रक्ताधान अत्यंत जटिल हो जाता है, क्योंकि केवल CRIB-नेगेटिव रक्त ही इसके लिए उपयुक्त है, जो कि अत्यंत दुर्लभ है।

यह खोज विशेष रूप से हेमोलिटिक डिजीज ऑफ द फीटस एंड न्यूबॉर्न (HDFN) जैसे मामलों में महत्वपूर्ण है,

जिसमें माँ के एंटीबॉडीज भ्रूण की लाल रक्त कोशिकाओं पर हमला करते हैं। CRIB की पहचान से गर्भावस्था के दौरान ऐसी जटिलताओं को रोकने में मदद मिल सकती है।

इस खोज की घोषणा जून 2025 में मिलान, इटली में आयोजित 35वें क्षेत्रीय कांग्रेस ऑफ द इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन (ISBT) में की गई,

जिसने इस महिला को विश्व की पहली व्यक्ति के रूप में चिह्नित किया, जिसमें CRIB एंटीजन पाया गया।

इस खोज ने भारत को वैश्विक इम्यूनोहेमाटोलॉजी अनुसंधान में अग्रणी स्थान दिलाया है।

रोटरी बेंगलुरु TTK ब्लड सेंटर ने कर्नाटक स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल और ICMR के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोहेमाटोलॉजी के सहयोग से एक रेयर डोनर रजिस्ट्री की स्थापना की है,

ताकि दुर्लभ रक्त समूहों वाले मरीजों की जरूरतों को पूरा किया जा सके।

वैज्ञानिकों का कहना है कि यह खोज न केवल रक्ताधान सुरक्षा को बढ़ाएगी, बल्कि अंग प्रत्यारोपण और जटिल सर्जरी में भी बेहतर संगतता सुनिश्चित करेगी।

यह भारत की आनुवंशिक विविधता और चिकित्सा अनुसंधान में उसकी बढ़ती भूमिका को भी रेखांकित करता है।

विशेषज्ञ अब CRIB-विशिष्ट एंटीबॉडी पैनल और स्क्रीनिंग टेस्ट विकसित करने की दिशा में काम कर रहे हैं, ताकि भविष्य में ऐसे वाहकों की जल्दी पहचान हो सके।

यह खोज मानव जीवविज्ञान के अनसुलझे रहस्यों को उजागर करती है और वैश्विक स्तर पर रक्त विज्ञान में निरंतर नवाचार की आवश्यकता को दर्शाती है।

यह भारत के लिए गर्व का क्षण है, जो विश्व मंच पर चिकित्सा विज्ञान में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को प्रदर्शित करता है।

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