महाराष्ट्र के पुणे जिले के शिरूर तहसील में स्थित पिंपरखेड़ गांव और उसके आसपास के इलाकों में तेंदुए के खौफ ने ग्रामीणों की जिंदगी को दहशत में डाल दिया है।
पिछले एक महीने में तीन लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें दो नाबालिग बच्चे और एक बुजुर्ग शामिल हैं।
ऐसे में खेतों में काम करने वाली महिलाओं ने एक अनोखा और साहसी कदम उठाया है।
वे गले में कांटेदार लोहे या प्लास्टिक के पट्टे पहनकर काम कर रही हैं। ये पट्टे तेंदुए के हमले से गर्दन की रक्षा करने के लिए डिजाइन किए गए हैं,
क्योंकि तेंदुए आमतौर पर शिकार की गर्दन पर हमला करते हैं। यह अभ्यास न केवल ग्रामीणों की हिम्मत की मिसाल है, बल्कि मानव-वन्यजीव संघर्ष की गंभीर समस्या को भी उजागर करता है।
पिछले 30 दिनों में शिरूर, अंबेगांव, जुन्नर और खेड़ तहसीलों में तेंदुए के हमलों में तीन लोगों की जान जा चुकी है।
पिंपरखेड़ गांव में यह समस्या सबसे ज्यादा गंभीर है, जहां गन्ने की खेती प्रमुख है और तेंदुए अक्सर खेतों में घुस आते हैं।
2 नवंबर को पांच साल के बच्चे रोहन बोम्बे की तेंदुए ने हत्या कर दी, जिसके बाद पूरे इलाके में दहशत फैल गई।
इससे पहले, एक अन्य नाबालिग बच्चे और एक बुजुर्ग की भी मौत हुई। जंगल से सटे इन गांवों में पानी और मवेशियों की उपलब्धता के कारण तेंदुए मानव बस्तियों में घुसपैठ कर रहे हैं।
वन विभाग के एक अधिकारी ने बताया, “तेंदुए तेज होते हैं और शिकार को 10-15 सेकंड में गर्दन पकड़कर मार देते हैं।
खेतों में झुककर काम करने वाले लोग या बच्चे आसान शिकार बन जाते हैं।
इस साल जुन्नर तहसील में तेंदुए के हमले दिन के समय भी होने लगे हैं, जो पहले रात तक सीमित थे।
वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, कुत्तों जैसे पहले के शिकार अब तेंदुए को आकर्षित नहीं कर पा रहे, इसलिए बच्चे, बुजुर्ग और गन्ना काटने वाले मजदूर निशाना बन रहे हैं।
जुन्नर के गांवों से रोजाना डिस्ट्रेस कॉल्स आ रही हैं, और कुछ परिवार तो घर छोड़ने की सोच रहे हैं।
कांटेदार पट्टे: ग्रामीणों का स्वयं-रक्षा कवच
इन हमलों से त्रस्त महिलाओं ने इंटरनेट पर जानकारी खोजी और कांटेदार पट्टे पहनना शुरू कर दिया।
ये पट्टे प्लास्टिक या धातु से बने होते हैं, जिनमें 40 मिमी लंबे नुकीले कांटे लगे होते हैं। कुछ पट्टों में घुंघरू (छोटी धातु की घंटियां) भी जुड़े होते हैं,
जो शोर मचाकर तेंदुए को भगाने में मदद करते हैं। सिमुसॉफ्ट टेक्नोलॉजीज द्वारा डिजाइन किए गए ये हल्के पट्टे गर्दन पर आसानी से पहने जा सकते हैं और वन विभाग द्वारा मुफ्त वितरित किए जा रहे हैं।
अक्टूबर 2024 से अब तक जुन्नर वन प्रभाग ने 3,300 से अधिक पट्टे बांटे हैं।
पिंपरखेड़ के निवासी अर्जुन माने ने बताया, “पुलिस और वन विभाग ने अकेले न घूमने और बच्चों को न छोड़ने की सलाह दी।
हमने ऑनलाइन देखा और ये स्पाइक वाले पट्टे ट्राई करने का फैसला किया। तेंदुआ गर्दन पर हमला करता है, तो हम उसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
अगर ये कामयाब रहा, तो कई जिंदगियां बचेंगी।जुन्नर की सहायक वन संरक्षक स्मिता राजहंस ने कहा, “अधिकांश घातक हमले गर्दन पर होते हैं।
ये स्पाइक वाले पट्टे कई जिंदगियां बचा चुके हैं और अब हमारी सुरक्षा रणनीति का अहम हिस्सा हैं। लोगों की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है।
वन अधिकारी के मुताबिक, अगर तेंदुए का पहला हमला नाकाम रहा, तो वह इंसान की असली ताकत समझकर पीछे हट सकता है।
कांटे न केवल रक्षा करते हैं, बल्कि तेंदुए को चोट भी पहुंचा सकते हैं, जिससे वह भविष्य में सतर्क हो।
इन घटनाओं के बाद ग्रामीणों ने पुणे-नासिक हाईवे पर मनचर में रास्ता रोको आंदोलन किया।
उन्होंने तेंदुओं के लिए शूट-एट-साइट आदेश, स्थानांतरण, बंध्याकरण और उपमुख्यमंत्री अजित पवार तथा वन मंत्री गणेश नायक के गांव दौरा की मांग की।
वन मंत्री ने 1,200 पिंजड़ों और जाल लगाने के लिए फंड जारी करने की घोषणा की, साथ ही एआई निगरानी और अन्य तकनीकी उपायों का वादा किया।
पिछले हफ्ते दो तेंदुओं को पकड़ा गया एक पिंजरे में और एक संदिग्ध मानव-भक्षक को शार्पशूटर ने मार गिराया।
उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने शोकग्रस्त परिवारों से मुलाकात की और लंबे समय के समाधान का आश्वासन दिया, लेकिन अजित पवार और गणेश नायक अभी तक नहीं पहुंचे।
जुन्नर में वन्यजीव बचाव टीम वन्यजीव निसर्ग संवर्धन रेस्क्यू टीम और वर्ड फॉर नेचर फाउंडेशन ने जागरूकता अभियान चलाया।
इसमें तेंदुए की पहचान (पगमार्क, नाखून के निशान, पुकार), सतर्क रहना और शांतिपूर्ण व्यवहार सिखाया गया।
वर्ड फॉर नेचर के अध्यक्ष शुभम पांडे ने कहा, “इस साल स्थिति चिंताजनक है। हमले दिन में भी हो रहे हैं।
हम लोगों को शांत रहने की सलाह दे रहे हैं, क्योंकि घबराहट या भागना हमला भड़का सकता है। मानव-तेंदुआ सह-अस्तित्व ही समाधान है।
अभियान में व्यावहारिक डेमो दिए गए और ग्रामीणों ने और सत्रों की मांग की। वन विभाग ने रात्रि गश्त बढ़ाई, कैमरा ट्रैप लगाए और जागरूकता को विस्तार दिया।
वन्यजीव विशेषज्ञ आकाश माली और दीपक माली ने बताया कि तेंदुए प्राकृतिक संतुलन का हिस्सा हैं, लेकिन शहरीकरण और जंगलों की कटाई से संघर्ष बढ़ा है।
वे सलाह देते हैं कि खेतों में समूह में काम करें, शोर मचाएं और रात में टॉर्च का इस्तेमाल करें। हालांकि, कांटेदार पट्टे जैसे तात्कालिक उपाय जीवन रक्षक साबित हो रहे हैं।
यह घटना महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में मानव-वन्यजीव संघर्ष की गहराई को दर्शाती है। अगर समय रहते व्यापक उपाय न अपनाए गए, तो यह समस्या और भयावह हो सकती है।
ग्रामीणों की यह साहसी पहल निश्चित रूप से एक मिसाल है, लेकिन स्थायी समाधान के लिए सरकार और समुदाय को मिलकर काम करना होगा।