जमाने के साथ-साथ बहुत कुछ बदल रहा है, नए जमाने में कई चीजे के ईजाद होने से लोगों को सहूलियत तो मिली है।
वही हिंदी फ़िल्मों में अमिताभ बच्चन के दौर से लेकर गोविंदा की फिल्मों तक में आपने कुली के जीवन के संघर्ष को देखा होगा।
कि किस तरह से वह सारी दुनिया का बोझ उठाते हैं। मतलब अपने जीवन यापन करने के लिए यात्रियों का सामान उठाकर चंद पैसे कमाते हैं।
मगर वही इस ई गाड़ी के आ जाने से इनसे लोगों के रोजगार पर भी असर पड़ा रहा है।
जो रेलवे स्टेशनों में लाल कपड़े पहने,बिल्ला लगाए और आपके बोझ को उठाकर कुछ पैसे कमाने वाले ये कुली बरसों बाद आज बेहद परेशान हैं।
दरअसल, मरीज यात्रियों के लिए शुरू किए गए इलेक्ट्रिक वाहन इनके पेट पर लात मार रहे हैं।
दिनभर में 100- 200 रुपए कमाने वाले यह कुली अब बेहद परेशान है. मरीज और बुजुर्ग यात्रियों के लिए शुरू की जाने वाली इस गाड़ी का उपयोग अब सामान्य यात्री भी कर रहे हैं।
जो अपना सामान रखकर चल पड़ते हैं और कुलियों को इससे परेशानी हो रही है क्योंकि उनके रोजगार पर इसका असर पड़ रहा है।
इसी काम में सालों से लगे कुलियों को अपनी आजीविका चलाना मुश्किल हो गया है।
कई बुजुर्ग व बीमार कुलियों के लिए ईलाज और पेट भरने के लिए पैसे भी नहीं होते हैं. 300-400 रुपये प्रतिदिन कराना भी मुश्किल होता है, तो कभी बोनी भी नहीं हो पाती है।
बोझ तले दबी जिंदगी: कुली की व्यथा और इलेक्ट्रिक वाहन की मार,
समय का पहिया कितनी तेजी से घूमता है.एक दौर था जब रेलवे स्टेशन पर लाल वर्दी में ‘बोझ उठाने वाले’ ये मजबूत कंधे किसी भी यात्री के लिए सबसे बड़ी सहूलियत होते थे।
लेकिन आज, इस बदलते दौर में, यही कुली खुद एक अनदेखे और असहनीय बोझ तले दबे हैं।
देहरादून में, जहाँ 1900 में रेल का सफर शुरू हुआ था, ये कुली बरसों तक यात्रियों के सारथी रहे।
बिल्ला नंबर लगाए, अपनी कमर पर गमछा कसकर, वे हर स्टेशन पर ‘कुली’ की पुकार का इंतजार करते थे।
लेकिन अब, इनकी जिंदगी की गाड़ी मानो बीच पटरी पर आकर रुक गई है,
और इसकी वजह है नई सुविधा, जो इनके लिए अभिशाप बन गई है, इलेक्ट्रिक वाहन।
नेशनल फेडरेशन ऑफ रेलवे पोटर्स एंव कुली यूनियन के अध्यक्ष राम सुरेश ने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से आमजन को सुविधा देने के लिए आधुनिक चीजों को शुरू किया है।
जिससे हमारा काम प्रभावित हुआ है और हम सरकार से लगातार गुहार लगा रहे हैं कि कुली और उनके परिवार की आजीविका चलती रहें।
इसके लिए कोई नीति बनाएं. हम बार-बार सरकार को ज्ञापन देते हैं. जिस तरह रेल मंत्री होने के दौरान लालू प्रसाद यादव ने कुलियों का समायोजन किया था।
इस तरह कोई नीति बनाकर हमारा भी रेलवे में समायोजन किया जाए. इस कार के आने से हम और हमारे बच्चे भूखे मरने की कगार पर हैं।
उन्होंने बताया कि भारतीय रेलवे बोर्ड से उन्होंने आरटीआई के माध्यम से मांगा था कि यह इलेक्ट्रिक वाहन किस तरीके से चलाया जाएगा,
हमें जवाब मिला था कि यह सीनियर सिटीजन और मरीजों को सहूलियत देने के लिए चलाई जा रही है।
लेकिन सामान्य यात्री भी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे हमारी समस्या बढ़ रही हैं.
देशभर के 25 हजार कुली और देहरादून के 40 से 45 कुली और उनके परिवार परेशान हैं तो हम चाहते हैं सरकार हमारे लिए भी कोई नीति बनाए.
बुजुर्ग कुली रविंद्र यादव ने बताया कि वह पिछले 1990 से देहरादून रेलवे स्टेशन पर कुली के तौर पर काम कर रहे हैं।
और अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं लेकिन आज उनके लिए बेहद मुश्किल खड़ी हो गई है।
उन्होंने कहा कि आज हमारी बोनी भी नहीं हो पाती है कभी-कभी 100-200 रुपये भी नहीं कमा पाते हैं पहले दिन में 300-400 रुपये तो कमा ही लेते थे,
अब तो घर का चूल्हा जलना भी मुश्किल है. ये मरीज़ों के लिए आई थी, पर अब यह हमारे पेट पर लात मार रही है.”
उनके झुर्रियों भरे चेहरे पर सालों की मेहनत की लकीरें हैं, पर अब उन लकीरों के साथ भविष्य की चिंता का एक नया डर जुड़ गया है।
उनकी तरह उनके पेशे में कई कुली ऐसे हैं जिनकी उम्र ढल चुकी है और शरीर बीमारियों का घर,
और सालों तक भारी-भरकम सामान उठाने का नतीजा अब हड्डियों और जोड़ों के दर्द के रूप में सामने आता है।
लेकिन जब दिन भर में ‘बोनी’ भी नहीं होती, तो इलाज करवाना तो दूर, दो वक्त की रोटी का इंतजाम भी मुश्किल हो जाता है।