नई दिल्ली – लोकसभा में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकुंभ 2025 के आयोजन पर कई महत्वपूर्ण बातें कहीं। उनके भाषण का मुख्य जोर इस आयोजन के धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व पर था।
अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा कि महाकुंभ कोई साधारण आयोजन नहीं है, बल्कि यह जनता की श्रद्धा और संकल्पों की प्रेरणा का प्रतीक है। उन्होंने इसे एक ऐसी शक्ति के रूप में चित्रित किया जो समाज को एकजुट करती है।
उन्होंने महाकुंभ की तुलना भगीरथ द्वारा गंगा को धरती पर लाने के पौराणिक प्रयास से की। उनका कहना था कि जिस तरह भगीरथ ने तपस्या से असंभव को संभव किया, वैसे ही महाकुंभ का सफल आयोजन सामूहिक प्रयासों का परिणाम है।
पीएम ने पिछले साल (2024) अयोध्या में हुए राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि वहां देश ने एक हजार साल के भविष्य की नींव रखी थी, और महाकुंभ इस संकल्प को और मजबूत करता है। यह भारत की आध्यात्मिक निरंतरता को दर्शाता है।
उन्होंने मॉरीशस के गंगा तालाब का उदाहरण दिया, जहां महाकुंभ का पवित्र जल अर्पित किया गया। पीएम ने कहा कि वहां श्रद्धा और उत्सव का जो माहौल बना, वह भारत की सांस्कृतिक पहुंच और वैश्विक एकता को दिखाता है।
मोदी ने जोर देकर कहा कि महाकुंभ भारत की विविधता में एकता का प्रमाण है। यहां हर वर्ग, हर संप्रदाय के लोग बिना भेदभाव के एक साथ स्नान करते हैं, जो सामाजिक समरसता का संदेश देता है।
उन्होंने सरकार की तैयारियों का भी जिक्र किया, यह कहते हुए कि इस बार का महाकुंभ पहले से कहीं अधिक भव्य और व्यवस्थित होगा। उनका कहना था कि यह आयोजन भारत की संगठन क्षमता और आधुनिकता के साथ परंपरा के मेल को प्रदर्शित करता है।
प्रधानमंत्री का यह संबोधन महाकुंभ को सिर्फ एक धार्मिक घटना से ऊपर उठाकर इसे राष्ट्रीय गौरव और वैश्विक पहचान के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करता है। उन्होंने इसे भारत की सनातन संस्कृति और भविष्य के संकल्पों का संगम बताया।
