देहरादून 14 जुलाई 2025। जीवन में बिना मेहनत किए अगर कोई आगे बढ़ना चाहता हैं तो ‘चमचा’ बनना सबसे आसान और कारगर तरीक़ा है।
चमचागिरी की शुरुआत बचपन से ही हो जाती है। स्कूल में जो बच्चा सबसे ज्यादा ‘यस मैडम’ और ‘यस सर’ करता है, टीचर उसे सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं।
कॉलेज आते-आते चमचागिरी एक प्रोफेशनल स्किल बन जाती है। जो छात्र प्रोफेसर की हर बात पर “वाह सर! आप तो जीनियस हैं!” कहे, उसका नंबर बढ़ना तय है।
ऑफिस की चमचागिरी:
ऑफिस में भी चमचों का बोलबाला रहता है। अगर आपको बॉस की बकवास जोक पर सबसे ज़ोर से हँसना आता है, तो प्रमोशन पक्का समझो!
बॉस:”अरे, मैंने तो ऐसा प्रोजेक्ट बनाया है कि गूगल वाले भी दंग रह जाएँगे!”
चमचा:”वाह सर! आप तो आईटी की दुनिया के अमिताभ बच्चन हैं!”
अब बेचारा मेहनती कर्मचारी सोचता रह जाता है कि वह पिछले तीन महीने से रात-दिन काम कर रहा था, लेकिन क्रेडिट बॉस और उसके चमचों को ही मिल गया!
राजनीति में चमचा संस्कृति
राजनीति में तो चमचागिरी एक विशेष योग्यता होती है। बड़े नेताओं के पीछे चलने वाले छोटे नेता सिर्फ़ एक ही काम जानते हैं—”साहब, आप जैसा कोई नहीं!”
– नेता अगर बारिश में भी कहें कि धूप निकल रही है,तो चमचे बोलेंगे—”सही कहा सर, यह तो आपका तेज है!”
– नेता अगर कहें कि यह सड़क बिलकुल सही बनी है, तो चमचे कहेंगे—”सर, जनता को इतनी शानदार सड़क देने के लिए धन्यवाद!” (भले ही सड़क बनने के अगले दिन ही उसमें गड्ढे हो जाएँ!)
जो लोग सच्चे, मेहनती और ईमानदार होते हैं, वे अक्सर पीछे रह जाते हैं। इसलिए अगर आपको जीवन में आगे बढ़ना है, तो ‘चमचागिरी का हुनर’ सीख लो—क्योंकि इसी से सफलता तय होती है!