देहरादून – इस प्राणायाम में पूरक करते हुए गले को सिकोड़ते हैं और जब गले को सिकोड़कर श्वास अन्दर भरते हैं तब जैसे खर्राटे लेते समय गले से आवाज होती है, वैसे ही इसमें पूरक करते हुए कण्ठ से ध्वनि होती है।
ध्यानोपयोगी आसन में बैठकर दोनों नासिकाओं से वायु अन्दर खीचिए। कण्ठ को थोड़ा संकुचित करने से वायु का स्पर्श गले में अनुभव होगा। हवा का घर्षण नाक में नहीं होना चाहिए। कण्ठ में घर्षण होने से एक ध्वनि उन्पन्न होगी।
प्रारम्भ में कुम्भक का प्रयोग न करके केवल पूरक रेचक का ही अभ्यास करना चाहिए। पूरक के बाद धीरे-धीरे कुम्भक का समय पूरक जितना तथा कुछ दिनों के अभ्यास के बाद कुम्भक का समय पूरक से दुगुना कर दीजिए।
कुम्भक 10 सेकण्ड से ज्यादा करना हो तो जालन्धर-बन्ध और मूलबन्ध भी लगायें। इस प्राणायाम में सदैव दाईं नासिका को बन्द करके बाईं नासिका से ही रेचक करना चाहिए।
इस आसन को करने से लाभ
जो साल भर सर्दी, खाँसी, जुकाम से पीड़ित रहते हैं, तथा जिनको थायरॉइड, स्नोरिंग, स्लीपएप्निया, हृदयरोग, अस्थमा, फुफ्फुस एवं कंठविकार, टॉन्सिल, अनिद्रा, मानसिक तनाव और रक्तचाप, अजीर्ण, आमवात, जलोदर, क्षय, ज्वर, प्लीहा आदि रोग हों, उनके लिए यह लाभप्रद है। गले को ठीक, नीरोग एवं मधुर बनाने हेतु इसका नियमित अभ्यास करना चाहिए। कुण्डलिनी जागरण, अजपा-जप, ध्यान आदि के लिए उत्तम प्राणायाम है। इससे बच्चों का तुतलाना भी ठीक होता है।
