देहरादून – 80 के दशक तक रेडियो का खूब बोल बाला रहा जिसमें तरह-तरह के कार्यक्रमों के साथ समाचार सुनने को मिलता वही रात 8:00 के करीब “हवामहल” प्रोग्राम आता था।
जिसमें अलग-अलग प्रकार के नाटकों का मंचन सुनने को मिल जाता था। और ज्यादातर नाटक बहुत ही सुंदर तरीके से सुनने को मिलता था। वही धीरे-धीरे इस समय बदलता गया और टेलीविजन ने रेडियो की जगह कब ले ली,
और टेलीविजन ने धीरे-धीरे रेडियो की लोकप्रियता को खत्म करता चला गया। लेकिन फिर एक बार रेडियों अपनी पहचान को वापस बनानेेे में लगा हुआ है और धीरे-धीरे लोगों में रेडियो के प्रति दिलचस्पी पैदाकर रहा है।
आज फोन पर रेडियो को सुनते समय ठीक रात 8:00 “हवामहल” कार्यक्रम की वही मधुर धुन सुनाई दी सुनकर बड़ा आनंद आया और पुरानी यादों को ताजा कर गई, आज से 30-35 साल पहले रेडियो से गाने और फिल्मों की कहानी का प्रसारण किया जाता था छोटे-छोटे भगों में बिनाका, शिबाका गीत माला मैं अमीन साहनी की आवाज सुनने को मिलती थीं।
आज रेडियो पटना से जारी “हवामहल” कार्यक्रम में नाटिका ‘ऊपर जाने का रास्ता’ नाटक आ रहा था जिसमें पत्नी और साहित्यकार पति की नोक झोक की खुबसुरत प्रस्तुति आ रही थी।