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इन दो ऋतुओं में क्या करें और क्या ना करें

“ग्रीष्म (ज्येष्ठ-आई) 15 मई-15 जुलाई”


बल का क्षय,कफ का क्षय,वात का संचय।



पथ्य आहार-विहार (क्या करें ?)

हल्के, मीठे, चिकनाई वाले पदार्थ, ठण्डे पदार्थ, चावल, जी, मूंग, मसूर, दूध, शर्बत, दही, फलों का रस, सत्तू, छाछ।

संतरा, अनार, नींबू, खरबूजा, तरबूज, शहतूत, गन्ना, नारियल पानी, जलजीरा, प्याज,कच्चा आम (कैरी) ।

सूर्योदय से पहले उठना तथा उषापान, सुबह टहलना दो बार स्नान, ठण्डी जगह पर रहना, धूप में निकलने से पहले पानी पीना, सिर को ढककर चलना, सुगन्धित द्रव्यों का प्रयोग एवं दिन में सोना।

अपथ्य आहार-विहार (क्या न करें ?)

धूप, परिश्रम, व्यायाम, प्यास रोकना, रेशमी कपड़े, कृत्रिम सौन्दर्य प्रसाधन।प्रदूषित जल, गरम, तीखे, नमकीन, तेज मसाले, मैदा, बेसन, तले एवं पचने में भारी खाद्य।

 

“वर्षा (श्रावण-भाद्रपद) 15 जुलाई-15 सितम्बर”

अतिमंद अग्नि, त्रिदोष प्रकोप, विशेष रूप से वात प्रकोप।

पथ्य आहार-विहार (क्या करें ?)

अम्ल, लवण, स्नेहयुक्त भोजन, पुराने अनाज, मांस रस, घी एवं दूध, छाछ में बनाई गई बाजरा या मक्का की राबड़ी, कदू, बैंगन, परवल, करेला, लौकी, तुरई, अदरक, जीरा, मेथी, लहसून, भोजन/पान में शहद का उपयोग।

पानी उबाल कर प्रयोग, तेल की मालिश, मच्छरदानी का उपयोग, स्नान उपरांत गंध द्रव्य लेप, वस्ति का प्रयोग।

अपथ्य आहार-विहार (क्या न करें ?)

चावल, आलू, अरबी, भिण्डी तथा भारी आहार, बासी भोजन, दही, मांस, मछली, अधिक तरल पदार्थ ।तालाब एवं नदी के जल का प्रयोग।

वर्षा में भीगना, दिन में सोना, रात में जागना, खुले में सोना, अधिक व्यायाम, धूप सेवन, अधिक परिश्रम, जलाशय में स्नान एवं तैरना।

 

 

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