हृदय चक्र या निम्न मनश्चक्र (निचला मस्तिष्क जाल बनाम कंकाल प्रणाली) ।
देहरादून – यह हृदय चक्र के पास विद्यमान है, तंत्र ग्रंथों में वाक्पतित्व,कवित्व-शक्ति का लाभ, जितेन्द्रियता आदि इस पर ध्यान करने के लाभ बताये गये हैं।
शिवसारतन्त्र’ में कहा है कि इसी स्थान में उत्पन्न होने वाली अनाहत ध्वनि (अनहद नाद) ही सदाशिव (कल्याण- कारक) उद्गीथ रूप ओंकार है।
स्त्रियों एवं श्रद्धाप्रधान चित्तवाले साधकों के लिए यह चक्र धारणा एवं ध्यान के लिए उपयुक्त स्थान है।
इस चक्र पर ध्यान करने वाले को कभी हृदयरोग नहीं हो सकता।
अनाहत चक्र (कार्डियक प्लेक्सस बनाम संचार प्रणाली)
यह चक्र दोनों स्तनों के मध्य विद्यमान है। मूलाधार, स्वाधिष्ठान एवं मणिपूर चक्रों के जागृत व स्वस्थ होने से यह स्वतः जागृत हो जाता है। इसके जागृत होने के परिणामस्वरूप हड्डियां एवं मांसपेशियां स्वस्थ व सुदृढ़ होने लगती हैं।
इस चक्र पर ध्यान करने से प्रेम, करुणा, सेवा एवं सहानुभूति आदि दिव्य गुणों का विकास होता है। महर्षि व्यास भी हृदयचक्र में ध्यान के लिए कहते हैं।
यह हृदय का स्थूल भाग नहीं, अपितु भावनात्मक भाग है, जिसका सम्बन्ध व्यक्ति के चित्त मानस से है।
प्रारम्भ मे अनाहत चक्र का बड़ा रूप इसमें हृदय-पुण्डरीक के मध्यवर्ती मण्डलों को स्पष्ट किया गया है।