देहरादून — प्रमुख वन संरक्षक डॉ धनंजय मोहन ने कहा कि उत्तराखंड में गर्मियां शुरू होते ही वन विभाग के सामने सबसे बड़ी चुनौती वनाग्नि है जिसकी रोकथाम के लिए वन विभाग हर साल नए प्रयोग करता है।
वही इस साल वन विभाग ने स्थानीय जनता की सेवा करता के साथ सहभागिता के साथ एक एप और हेल्पलाइन नंबर लॉन्च किया है और विभाग का दावा है कि विभाग ने जो कदम उठाए हैं।
उनसे वनाग्नि की घटनाओं को रोकने में मदद मिलेगी लेकिन सवाल यही है कि हर साल की तरह इस साल भी कहीं वन विभाग के दावे खोखले ना रह जाएं।
उत्तराखंड में साल दर साल बढ़ रही वनाग्नि की घटनाओं के कारण हर साल प्रदेश के लाखों हेक्टेयर जंगलों को नुकसान होता है जिसके कारण जंगलों में रहने वाली जंगली जानवरों की कई प्रजाति भी इस आपदा से प्रभावित होती है।
यही नहीं कई बार इस भीषण आपदा में जनहानि भी हुई है जिसके चलते वन विभाग के सभी इंतजाम हर साल खोखले साबित होते हैं वहीं पिछले साल प्रदेश में वनाग्नि की 21 हजार 33 घटनाएं सामने आईं है जिसमें 1 लाख 80 हजार हेक्टेयर जंगल जलकर बर्बाद हो गए।
अपर मुख्य वन संरक्षक निशांत वर्मा ने कहा कि साल 2024 में वनाग्नि की घटनाओं में हुई इस बढ़ोतरी के बाद वन विभाग को सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी की नाराजगी भी झेलनी पड़ी हालांकि वन विभाग का दावा है कि इस साल विभाग ने ग्राम पंचायत स्तर पर समिति बनाई है।
जिनकी वनाग्नि की रोकथाम में सहभागिता रहेगी और विभाग उन्हें सलाना 30 हजार रुपए प्रोत्साहन के रूप में देगा।इसके अलावा विभाग में एक ऐप और हेल्पलाइन नंबर 1932 भी जारी किया है।
जिससे वन अग्नि की रोकथाम में मदद मिलेगी वही वही इस साल वन कर्मियों को आधुनिक उपकरण भी दिए जाएंगे जिससे कर्मचारियों को किसी तरह का नुकसान ना हो इसके साथ ही आपातकाल की स्थिति में सेवा के हेलीकॉप्टर की भी मदद ली जाएगी।