“गोविन्द चातक पुरस्कार”
(उत्तराखण्ड की अन्य बोली भाषा में दीर्घकालीन साहित्य सेवा के लिए)
देहरादून – गोविन्द चातक ने अपनी प्राथमिक शिक्षा टिहरी से और देहरादून से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की। स्नातक उतीर्ण उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से किया और उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए किया। आगरा विश्वविद्यालय से ही पी.एच.डी की उपाधि प्राप्त की। उनका शोध विषय गढ़वाली की उपबोलिया व उसके लोक गीत था।
अध्ययन काल से ही गढ़वाली लोक साहित्य की और अभिमुख रहे। 1955 में गढ़वाली लोकगीत और गढ़वाली लोकगाथा के नाम की दो पुस्तकें लिखी। 1967 में डी. चातक की गढ़वाली लोकगीत एक संस्कृति अध्ययन नामक विद्वतापूर्ण ग्रन्थ प्रकाश में आया।
तत्पश्चात मध्य पहाड़ी की भाषा शास्त्रीय अध्ययन। नाट्य लोचन के क्षेत्र में उनके लिखे अनेक ग्रन्थ भारतीय विश्व विद्यालयों के पाठ्यक्रम में निर्धारित है, जैसे नाटक स्वरूप और संरचना, प्रसाद के नाटक, सर्जनात्मक धरातल और भाषिक चेतना दूर का आकाश आदि। सस्कृति समस्या और सम्भावना कृति 1994 में प्रकाशित हुई।
इनके अतिरिक्त मध्य पहाड़ी भाषा शास्त्रीय आगमन् नाटककार जगदीश चन्द्र माथुर, ‘आधुनिक नाटक का मसीहा मोहन राकेश रंगमंच कला दृष्टि नाट्य भाषा, आधुनिक हिन्दी नाट्क भाषिक और सवादीय संरचना, लड़की और पेड (कहानी) काला मुँह, केकड़े और दूर का आकाश (नाटक) आपकी अन्य कृतिया है।
वे आकाशवाणी दिल्ली के ड्रामा अनुमाग में चार वर्ष सहायक प्रोड्यूसर रहे। राजधानी कालेज दिल्ली से प्राध्यापक के रूप में सेवानिवृत्त हुए। दिल्ली वि.वि. में नाटक और रंगमंच विषय का अध्यापन और शोध निर्देशन किया। अपनी साहित्यिक सेवाओं के लिए वे अनेक बार पुरस्कृत किए गए यथा-रंगमंच कला और दृष्टि तथा नाटक दूर का आकाश और काला मुंह के लिए उ.प्र हिन्दी संस्थान,
दूर का आकाश (नाटक) दिल्ली अकादमी, दिल्ली तथा बाँसुरी बजती रही कृति के लिए साहित्य कला परिषद, दिल्ली प्रशासन द्वारा। डॉ. चातक ने कुछ ग्रंथों का भी संपादन किया है। जिनमें डॉ पीताम्बर दत्त बड़व्वाल के निबन्ध महत्वपूर्ण है।
“गोविन्द चातक पुरस्कार”
डॉ. सुरेश मंमगाई को मिला इन के पिता का नाम स्व. नन्दराम मंमगाई और माता का नाम स्व. तुलसी देवी,इन की जन्मतिथि 10 अप्रैल, 1068 और स्थायी निवास का पता है ग्राम- रिक्साल, पट्टी-चौथान, तहसील-थनीतीण।
इनका कार्यक्षेत्र है प्रोफेसर, हिन्दी क्षेत्र में कार्यरत एवं अध्यापन।इनकी शिक्षा स्नातकोत्तर, एम. फिल (हिन्दी साहित्य) पीएच डी.।पूर्व में प्राप्त सम्मान घुमांण बहुभाषा सम्मेलन पुरस्कार, 2016 गोविंद चातक स्मृति आखर साहित्य सम्मान, 2019 गुरू शिक्षा सारथी सम्मान, 2023 युग्म अलंकरण सम्मान, 2023।
प्रकाशित पुस्तकों में पद्मावत में पराप्राकृतिक तत्व, रीतिमुक्त कवियों के काव्य का मनोवैज्ञानिक अध्ययन, गढ़वाली भाषा की रूपरेखा, मध्य हिमालय की जाड़ जनजाति का सांस्कृतिक संघर्ष, गढ़वाली भाष और साहित्य, भारतीय लोकभाषा सर्वेक्षण, खण्ड-30 (उत्तराखण्ड): च्छोड्सा भाषा पर कार्य, झिक्कल कामची उदायली में जाड़ शब्दकोश पर कार्य किया।