देहरादून – प्लाविनी प्राणायाम यह एक प्रकार की वायुधौति है। जैसे मुँह से जल पिया जाता है, वैसे ही वायु को जब तक पूरा पेट वायु से न भर जाए तब तक लगातार पीते रहें।
फिर इस प्रकार डकार लेते हैं कि पी हुई सारी वायु तत्काल पेट से वायु बाहर निकल आए। वायु पीकर दूषित वायु को मुंह से बाहर निकाला जाना है।
इस आसन को करने से लाभ
उदर के समस्त रोग एवं हिस्टीरिया दूर करने में सहायक है। कृमि का नाश होता है तथा जठराग्नि तेज होती है। दूषित वायु दूर होती हैं।
दूसरा है केवली प्राणायाम इसमें केवल पूरक -रेचक करते हैं। कुम्भक नहीं किया जाता। पूरक के साथ ‘ओ३म्’ शब्द का तथा रेचक के साथ ‘ओम्’ का मानसिक उच्चारण करते हैं।
इस तरह, श्वसन-प्रश्वरान के साथ ‘ओम्’ का उद्गीथ के रूप में मानसिक ‘अजपा-जप’ निरन्तर होता रहता है।
इस आसन को करने से लाभ
एकाग्रता शीघ्र प्राप्त होती है तथा अजपा जप सिद्ध होता है।