देहरादून – मूर्च्छा प्राणायाम में दोनों नासिकाओं (नाक) सांस लेकर पूरक करके आँखें बन्द करते हुए सिर को ऊपर उठाकर पीछे ले जाते हैं,
ताकि दृष्टि आकाश की ओर रहे। फिर अन्तः कुम्भक लगाते हैं। बाद में आँखें बन्दकर सिर को पहले की अवस्था में लाकर धीरे-धीरे सांस छोड़ते हैं इस रेचक कहते हैं।
पुनः विश्राम लिये बिना पूरक, आकाश-दृष्टि, युग्मक सब एक साथ करते हैं और पूर्व अवस्था में आ जाते हैं। इसे प्रतिदिन 5 बार करना पर्याप्त है।
इस आसन को करने से मिलेंगे यह लाभ सिर-दर्द, वात-कम्प, स्नायु-दुर्बलता आदि में लाभदायक हैं।
नेत्र ज्योति बढ़ाने तथा स्मरण शक्ति तीव्र करने में उपयोगी हैं। कुण्डलिनी जागृत करने तथा मन को अन्तर्मुखी कर ध्यान में सहयोग करता है।