देहरादून – नाडी-शोधन प्राणायाम प्रारम्भ में नाडी-शोधन प्राणायाम के लिए अनुलोम-विलोम की भाँति दाई नासिका को बन्द करके बाई नासिका से श्वाय को अति शनैः शनैः अन्दर भरना चाहिए।
पूरा श्वास अन्दर भरने पर प्राण को यथाशक्ति अन्दर ही रोककर मूलबन्ध एवं जालन्धर बन्ध लगाना चाहिए। फिर जालन्धर बन्ध हटाकर खास को अत्यान्ता धीमी गति से दाई नासिका से बाहर छोड़ना चाहिए।
पूरा श्वास बाहर होने पर दाएँ स्वर से श्वास को धीरे-धीरे अन्दर भरकर अन्तःकुम्भक करें। ययाशान्ति अन्दर ही प्राण को रोककर फिर बाएँ स्वर से धीरे-धीरे बाहर निकाल दें। यह एक चक्र या नाडी-शोधन प्राणायाम का एक अभ्यास पूर्ण हुआ।
इस प्रक्रित्या को नासिकाओं पर बिना हाथ लगाये मानसिक एकाग्रता में किया जाये तो अधिक लाभप्रद है; क्योंकि इससे मन की भी पूरी एकाग्रता प्राण पर केन्द्रित रहती है तथा मन अत्यन्त स्थिरता को प्राप्त करता है।
श्वास को लेते तथा छोड़ते समय प्राण की कोई ध्वनि नहीं होनी चाहिए। इस प्राणायाम को एक से लेकर कम से कम तीन बार तक अवश्य करना चाहिए.अधिक जितनी इच्छा हो कर सकते हैं।
नाडी-शोधन प्राणायाम में पूरक अन्तःकुम्भक एवं रेचक का अनुपात प्रासम्म में यथाशक्ति 1:2:2 का रखना चाहिए, अर्थात् जैसे कि 10 सेकण्ड में पूरक करें
तो 20 सेकण्ड तक अन्तःकुम्भक करना चाहिए तथा 20 सेकण्ड में ही धीरे- धीरे रेचक करना चाहिए। बाद में इसका अनुपात 1:4:2 तक रखें। इतना होने पर इसके साथ बाह्यकुम्भक भी जोड़ सकते हैं,
अर्थात् 1:4:2:2 के अनुपात में क्रमशः पूरक, अन्तःकुम्भक, रेचक एवं बाह्यकुम्भक करना चाहिए।
इस प्राणायाम को अत्यधिक धीमी गति से करना चाहिए। संख्या के चक्कर में न पड़कर यथाशक्ति सहजता से इस प्राणायाम को करते हुए प्राण की गति जितनी दीर्घ और सूक्ष्म होगी, उतना ही अधिक लाभ होगा।
यथाशक्ति श्वास लेना, छोड़ना एवं रोककर रखना ही इस प्राणायाम का वास्तविक अनुपात है। ऐसा करते हुए बीच में विश्राम की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। पूरक, कुम्भक एवं रेचक करते हुए ओ३म् या गायत्री मंत्र का मानसिक रूप से जप, चिन्तन और मनन भी करते रहना चाहिए।
इस आसन को करने से लाभ
सभी लाभ अनुलोम-विलोम प्राणायाम के समान ही हैं। मस्क्यूलर डिस्ट्रॉफी, एम. एस., एस. एल. ई., पोलियो, नाडीतन्त्र की विकृति व ऑटोइम्यूनडिजीज में यह प्राणायाम विशेष लाभप्रद है। इन्द्रियों, मन एवं प्राण पर नियंत्रण प्राप्त करने में यह प्राणायाम सहयोगी है।