DehradunNews:-डॉ प्रेम बहुखंडी की कलम से पित्रोदा और विरासत टैक्स

देहरादून – डॉ प्रेम बहुखंडी की कलम से सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा अर्थात सैम पित्रोदा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित दूरसंचार आविष्कारक, उद्यमी, विकास विचारक और नीति निर्माता हैं,

जिन्होंने सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) और संबंधित वैश्विक और राष्ट्रीय विकास में 50 साल बिताए हैं। उनके नाम पर सैकड़ो पेटेंट हैं.

भारत में जो संचार क्रांति हुई है और जिसके खिलाफ अटल बिहारी बाजपेई संसद भवन में बैलगाडी लेकर गये थे,

डॉ प्रेम बहुखंडी।

उस संचार क्रांति के मूल में सैम पित्रोदा ही थे.     स्व० राजीव गाँधी  के प्रधानमंत्री कार्यकाल में, सैम पित्रोदा टेक्नोलॉजी मिशन के अध्यक्ष थे.

सैम पित्रोदा ने जो लिखा है, जो तकनीकी के क्षेत्र में विकास किया है उसे समझने के लिए, कुछ न्यूनतम स्तर की शिक्षा और ज्ञान चाहिए. लेकिन इस वक्त देश में मूर्ख काल चल रहा है,

जो 10वीं नकल करके पास हुआ है, जिसने 35 साल भीख मांगी है, जो पिता की पेंशन पर जीवित है और जिसके पास कुल जमा 100 गज ज़मीन है वो भी सैम पिट्रोदा के inheritance tax अर्थात विरासत टैक्स का विरोध कर रहा है.

विरासत टैक्स है क्या?

चूँकि भारत में लोकतंत्र है और राजनीति व्यक्ति के अंदर तक घुस चुकी है इसलिए इसको राजनीति के हिसाब से समझाया जाये.

कोई बड़ा नेता जो कि अपनी काबलियत और संघर्ष के दम पर राजनीति के उच्चतम शिखर को छूता है लेकिन यह जरूरी नहीं है कि उसके बच्चे भी उसी के बराबर के क्षमतावान हों,

लेकिन फिर भी टिकट उन्हीं को मिलता है, लायक हो या नालायक, वो राजनीति के ऊपर कौवे के तरह कब्जा कर लेते हैं.

ठीक इसी तरह जिन लोगों ने, अपनी मेहनत और हुनर के दम पर, बड़े व्यवसाय खड़े किये संपत्ति जोड़ी, लेकिन जरूरी नहीं है कि उनके बच्चे भी उनके जैसे काबिल हों, या यह भी नहीं है कि अन्य लोग उनसे अधिक काबिल न हों,

लेकिन व्यवसाय पर तो उन्हीं का कब्जा रहेगा जिनकी पिछली पीढ़ी ने अकूत धन सम्पदा जोड़ी है.(वैसे सच तो यह भी है कि मेहनत और काबलियत से ज्यादा संसाधनों (प्राकृतिक और मानव) को लूटने की कला और बेशर्मी ही किसी के पास अकूत संपत्ति इकठ्ठा करवा पाती है,

वरना मेहनत तो सीमा पर खड़ा सिपाही, फैक्ट्री का मजदूर, गटर साफ करने वाले, खेत मजदूरी करने वाला, सड़क पुल बनाने वाले मजदूर भी कम नहीं करते).

बस इसी लिए दुनिया के अधिकांश विकसित देशों ने, नई पीढ़ीयों के बीच, level playing field अर्थात समान अवसर प्रदान करने के लिए Inheritance tax अर्थात विरासत टैक्स का प्रावधान रखा है.

भारत में पहले, पूर्वजन्म के तथाकथित राजाओं को, सरकार की तरफ से विशेष धन दिया जाता था, जिसे प्रिवी पर्स कहते थे,  स्व० पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने, इस विशेष सहायता राशि को बंद कर दिया था, जिस कारण देश के राजे रजवाड़े इंदिरा गाँधी और कांग्रेस के विरोधी हो गए,

इनमें से अधिकांश या तो प्रत्यक्ष रूप में आरएसएस में चले गये या परोक्ष रूप से आरएसएस का समर्थन और कांग्रेस का विरोध करने लगे.

राजे राजवाडों का विरोध तो समझ आता है पर जिसके पास पिता की छोडी हुई 5 बीघा ज़मीन में से अब सिर्फ 100 गज ज़मीन बची हुई है वो क्यों Inheritance tax अर्थात विरासत टैक्स का विरोध कर रहा है.

अमेरिका में 100 मिलियन डॉलर से अधिक की संपत्ति वाले से Inheritance tax अर्थात विरासत टैक्स लिया जाता है. दुनिया के अनेक विकसित देशों में यह टैक्स 7 प्रतिशत से लेकर 70 प्रतिशत तक है. भारत में भी इसे लागू किया जाना चाहिए.

अडानी अम्बानी या टाटा बिरला ने जो संपत्ति इकठ्ठा की है वो देश के संसाधनों (प्राकृतिक और मानव) के नैतिक और अनैतिक दोहन से ख़डी की है, क्यों नहीं उस पर टैक्स हो, ताकि हर पीढ़ी में नए लोगों को व्यवसायिक उन्नति करने का मौका मिले.

इसी तरह राजनीति में भी, नालायक बेटे, बेटी, बीबी, प्रेमिका, के चुनाव लड़ने पर रोक लगेगी तो निश्चित ही नये प्रतिवाभान लोगों को मौका मिलेगा.

 

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