देहरादून – कुण्डलिनी शक्ति मूलाधार चक्र में सन्निहित दिव्य शक्ति की ही अर्वाचीन तन्त्रग्रन्थों में कुण्डलिनी शक्ति और वैदिक साहित्य में इसे ब्रहावर्चस् कहा गया है।
साधारणतया प्राणशक्ति इडा एवं पिंगला नाड़ियों से ही प्रवाहित होती है। जब व्यक्ति संयमपूर्वक प्राणायाम एवं ध्यान आदि यौगिक क्रियाओं का अभ्यास करता है, तब सुप्त सुपुष्णा नाड़ी में विद्यमान अद्भुत शक्ति विकसित होने लगती है।
जिस शक्ति का उपयोग भोगों में हो रहा था, वह शक्ति योगाभ्यास द्वारा रूपान्तरित होकर ऊध्र्वगामिनी हो जाती है। अफलातून तथा पाइथागोरस जैसे आत्मदर्शी विद्वानों ने भी अपने लेखों में इस बात का संकेत किया है।
कि नाभि के पास एक ऐसी दिवशक्ति विद्यमान है, जो मस्तिष्क की प्रभुता, अर्थात् बुद्धि के प्रकाश को उज्ज्वल कर देती है, जिससे मनुष्य के अन्दर दिव्य शक्तियाँ प्रकट होने लगती हैं।
