प्राणायाम की तीसरी प्रक्रिया है बाह्य प्राणायाम।
देहरादून – इस बाह्य प्राणायाम को करने की विधि इस प्रकार से है सबसे पहले आप सिद्धासन या पद्मासन में विधिपूर्वक बैठ कर श्वास को एक ही बार में यथाशक्ति बाहर निकाल दें।
श्वास बाहर निकालकर मूलबन्ध, उड्डीयान बन्ध एवं जालन्धर बन्थ लगाकर श्वास को यथाशक्ति बाहर ही रोककर रखें।
जब श्वास लेने की इच्छा हो, तब बन्धों को हटाते हुए धीरे-धीरे श्वास ले।श्वास भीतर लेकर उसे बिना रोके ही पुनः पूर्ववत् श्वसन-क्रिया द्वारा बाहर निकाल दें।
बाह्य प्राणायाम के समय शिवसंकल्प करें
इस प्राणायाम में भी उक्त कपालभाति के समान श्वास को बाहर निकालते हुए समस्त विकारों, दोषों को भी बाहर निकाला जा रहा है, इस प्रकार की मानसिक चिन्तन-धारा बहनी चाहिए। विचार-शक्ति जितनी अधिक प्रबल होगी, समस्त कष्ट उतनी ही प्रबलता से दूर होंगे, यह निश्चित जानें। मन का शिव-संकल्प से युक्त होना हर प्रकार की आधि-व्याधि का संहारक और शीघ्र सुफलदायक होता है।
बाह्य प्राणायाम करने का समय
3 से 5 सेकण्ड में श्वास को सहजता से पूरा अन्दर भरना एवं 3 से 5 सेकण्ड में ही सहजता से श्वास को बाहर छोड़कर बाहर ही 10 से 15 सेकण्ड रोककर रखना एवं पुनः 3 से 5 सेकण्ड में श्वास को अन्दर भरना एवं बाहर छोड़कर बाह्य प्राणायाम करना,
इस प्रकार लगभग 20 से 25 सेकण्ड में बाह्य प्राणायाम पूरा हो जाता है। एक के बाद दूसरा बाह्य प्राणायाम बिना रुके लगातार करें, तो उत्तम है। यदि प्रारम्भ में दो प्राणायामों के बीच 1-2 सामान्य श्वास लेने पड़ें तो ले सकते हैं।
2 मिनट में सामान्यतः 5 बार बाह्य प्राणायाम आराम से हो जाता है और 5 बार बाह्य प्राणायाम करना सामान्यतः पर्याप्त है। गुदाभ्रंश, पाइल्स, फिशर, फिस्टुला, योनिभ्रंश, बहुमूत्र, मूत्रकृच्छ्र एवं यौन रोगों से पीड़ित व्यक्ति इसका 11 बार तक अभ्यास कर सकते हैं।
कुण्डलिनी जागरण के इच्छुक साधक एवं ऊर्ध्वरेता होने की इच्छा रखने वाले साधक इसका अधिकतम 21 बार तक अभ्यास कर सकते हैं।
इस आसन को करने पर लाभ
यह हानिरहित प्राणायाम है। इससे मन की चंचलता दूर होती है। जठराग्नि प्रदीप्त होती है। उदर रोगों में लाभप्रद है। बुद्धि सूक्ष्म और तीव्र होती है। शरीर का शोधक है। वीर्य की ऊर्ध्व गति करके स्वप्नदोष, शीघ्रपतन आदि धातु-विकारों की निवृत्ति करता है।
बाह्य प्राणायाम करने से पेट के सभी अवयवों पर विशेष बल पड़ता है तथा प्रारम्भ में पेट के कमजोर या रोगग्रस्त भाग में हल्का दर्द का भी अनुभव होता है। अतः पेट को विश्राम तथा आरोग्य देने के लिए त्रिबन्ध-पूर्वक यह प्राणायाम करना चाहिए।