श्वसन क्रिया
देहरादून – श्वसन क्रिया हमारे शरीर में दो स्तर पर होती है। एक रक्त कोशिकाओं के स्तर पर. दो ऊतक कोशिकाओं के स्तर पर । श्वास लेने पर हम दोनों ही स्तर को श्वसन क्रिया को सम्पादित करते हैं। प्राणायाम में हम एक क्रमबद्ध तरीके श्वास-प्रश्वास को संतुलित रूप में सम्पादित करते हैं। प्राणायाम से मस्तिष्क व शरीर का रक्तसंचरण बेहतर होता है तथा अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का क्रियान्वयन सुचारु रूप से होता है जिससे हमारे शरीर व मस्तिष्क के विजातीय द्रव्यों का क्षय होने से आरोग्य प्राप्त होता है। तीव्र गति से दौड़ना या अन्य व्यायामों से भी यह लाभ प्राप्त होते हैं क्योंकि वे सब क्रियायें भी अपचय प्रधान क्रियाएं (catabolic processes) होती हैं। उन सभी क्रियाओं के द्वारा अतिरिक्त वसा के पाचन होने से तथा रक्त परिसंचरण के बढ़ने से स्वास्थ्य लाभ होता है। परन्तु प्राणायाम न केवल रक्त परिसंचरण बढ़ाता है अपितु अन्तःस्रावी ग्रन्थियों को सुचारु रूप से कार्य करने में मदद करता है। यह सिद्ध हो चुका है कि अधिकतर बीमारियां-जैसे मधुमेह, थायरॉयड रोग, उच्च रक्तचाप, रक्त परिसंचरण में बाधा, मोटापा, मस्तिष्कगत बोमारिया-जैसे अवसाद, भ्रम, कम्पवात इत्यादि सभी व्याधियां अन्त: स्रावी ग्रन्थियों के अनियंत्रित रूप से कार्य करने के कारण होती है। अतः यदि प्राणायाम द्वारा इन ग्रन्थियों से सुचारु रूप से कार्य कराया जा सकता है तो हम इन सभी व्याधियों से मुक्ति पा सकते हैं।
अपचय तथा उपचय में अंतर
अपचय (Catabolic Processes)
• प्रोटीन, बसा एवं कार्बोधित पदार्थों को बढ़ने से रोकता है,
• अधिक मात्रा में संचित इन सभी का पाचन करके ऊर्जा उत्पन्न करता है।
• रक्त शर्करा, वसाम्ल को बढ़ाता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता हेतु को घटाता है।
• रक्त कोशिकाओं तथा यकृत्-एन्जाईम की मात्रा बढ़ाता है।
• रक्तचाप को बढ़ाता है।
उपचय (Anabolic Processes)
प्रोटीन, वसा एवं कार्बोधित पदार्थों को बढ़ाता है।
• इनके पाचन को कम करता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए श्वेत रक्तकणिकाओं को बढ़ाता है।
अस्थि की वृद्धि बढ़ाता है।
कोशिका, ग्रन्थि तथा मानसिक कार्यों की वृद्धि करता है।
• रक्तचाप को कम करता है, तथा हृदय की संकुचन शक्ति को ठीक करता है।