प्राणायाम ध्यान से आपका का मन शांत रहेगा

देहरादून – अपनी परम्परा, संस्कृति व ज्ञान को हम अज्ञानवश आत्मगौरव के रूप में न देखकर आत्मग्लानि से भर गये। ‘चक्र’ पढ़कर चक्कर में पड़ गये, परन्तु ‘ प्रणाली’ शब्द को पढ़ कर हम अपने आप को व्यवस्थित कहने लग गये जबकि प्राचीन ज्ञान व अर्वाचीन ज्ञान का तात्पर्य एक ही था- सत्य का बोधा

“प्रज्ञापराधो हि सर्वरोगाणां मूलकारणम्”(चरक) के आयुर्वेदोक्त सिद्धांत के बजाय तनाव सभी बीमारियों का मुख्य कारण है – यह वचन हमें अधिक वैज्ञानिक लगने लगा। अब तो आग्रह एवं अज्ञान छोड़ो और सत्य से नाता जोड़ो। उदाहरण के लिए अंत: स्रावी प्रणाली “endocrinal system” के असन्तुलन से तनाव व तनावजनित हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, अवसाद, मोटापा व मधुमेह आदि अनेक जटिल रोग उत्पन हो जाते हैं। इसी तरह से स्केलिटल सिस्टम के असंतुलन से शताधिक  प्रकार का तो ऑर्थराइटिस होता है एवं व्यक्ति मांसपेशियों की अनेक विकृतियों का शिकार हो जाता है। कहने का तात्पर्य है कि आन्तरिक सिस्टम में आप किसी भी तरह का असंतुलन ही रोग है, जबकि भीतर का संतुलन ही आरोग्य है।

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लाखों करोड़ों लोगों पर योग के प्रत्यक्ष एवं परोक्ष प्रयोग से यह पाय है गया कि मुख्यत: आठ प्राणायामों के विधिपूर्वक एक सुनिश्चित समय एवं संकल्पबद्ध अभ्यास से हमारे आठों चक्र या आठों सिस्टम पूरी तरह से संतुलित हो जाते हैं। परिणामतः हम योग से एक निरामय जीवन पाते हैं। साथ ही हम दवा के रूप में जो कैमिकल या हार्मोन बाहर से ले रहे थे, धीरे-धीरे उसकी आवश्यकता नहीं रह जाती, क्योंकि जो हम बाहर से ले रहे थे, वे सारे कैमिकल साल्ट या हार्मोन्स हमें भीतर से ही संतुलित मात्रा में प्राप्त हो जाते हैं।

योग एलोपैथी की तरह एक ‘पिजन होल ट्रीटमेन्ट’ न होकर आरोग्य की एक सम्पूर्ण संकल्पना है। आपातकालीन चिकित्सा छोड़कर शेष चिकित्सा के सभी क्षेत्रों में योग चिकित्सा व शल्य चिकिया है। योग के साथ कुछ जटिल रोगों में यदि आयुर्वेद का भी संयुक्त प्रयोग होता है।

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तो उपचार का असर अत्यधिक प्रभावी हो जाता है।उस आरोग्य पक्ष के साथ-साथ योग का आध्यात्मिक पक्ष भी बहुत ही विराट है। यद्यपि योग का मुख्य लक्ष्य समाधि की प्राप्ति या स्वरूप की उपलब्धि या परम सत्य का साक्षात्कार है, तथापि योग से प्राप्त होने वाली समाधि की इस यात्रा में बीच के अवरोध रूप रोग तो स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं, अर्थात् योग से व्याधि की परिसमाप्ति तो योग का बाइ-प्रोडक्ट है। मुख्य लक्ष्य तो समाधि ही है, यह हमें कभी भी नहीं भूलना चाहिए। योग के बारे में ये विचार मात्र बौद्धिक व्यायाम नहीं, कोई सपना, प्रलोभन या आश्वासन नहीं, अपितु योग के प्रयोग का यथार्थ है।  आश्वस्त कि आगे आने वाला विश्व आग्रह रहित होकर योग को आत्मसात् करेगा और योग से एक शान्त, स्वस्थ, संवेदनशील व समृद्ध राष्ट्र व विश्व का निर्माण होगा। साइंस एंड स्प्रीच्युअलिटी, भौतिकवाद व अध्यात्मवाद के समन्वय से पूर्ण विकास होगा। योग से आत्मधर्म व राष्ट्रधर्म जगेगा। आत्मकल्याण व विश्व कल्याण के पथ पर विश्व आगे बढ़ेगा और भारत विश्व की सर्वोच्च सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, आर्थिक व सामाजिक शक्ति के रूप में प्रतिष्ठापित होगा। अशान्ति में भय, घृणा, तृष्णा, असंतोष, अविवेक, क्रोध, असंयम एवं समस्त वासनात्मक भाव उत्पन्न होते हैं। प्राणायाम एवं ध्यान से जब व्यक्ति का मन शांत हो जायेगा, तो समाज, राष्ट्र व विश्व में व्याप्त भय, भ्रम, हिंसा, अपराध व भ्रष्टाचार भी मिट जायेगा और उपासना की वृत्ति से वासना की प्रवृत्ति पर भी नियन्त्रण आ जायेगा। भोगवादी विद्रूपताओं से मुक्ति का एकमात्र समाधान यही योगवादी दृष्टिकोण है। हिंसा, अपराध व कामोन्मत्तता के वैश्वीकरण के विकराल काल का अन्त योग की वैश्विक प्रतिष्ठापना से ही सम्भव है, अन्यथा महाविनाश से कोई बचा नहीं सकता।

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