देहरादून – प्राण-साधना प्राण का मुख्य द्वार नासिका है। यह नासिका छिद्रों के द्वारा आता-जाता है; श्वास-प्रश्वास जीवन तथा प्राणायाम का आधार है। श्वास-प्रश्वास-रूपी रज्जु का आश्रय लेकर यह ‘मन’ देहगत आन्तरिक जगत् में प्रविष्ट होकर साधक को वहाँ की दिव्यता का अनुभव करा दे, इस उद्देश्य को लेकर ही प्राणायाम-विधि का आविष्कार ऋषि-मुनियों ने किया था।
योगदर्शन के अनुसार- तस्मिन् सति श्वासप्र श्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः। अर्थात् आसन की सिद्धि होने पर श्वास-प्रश्वासों की गति को लयबद्ध करना ही प्राणायाम है। जो वायु श्वास अन्दर खींचने पर बाहर से भीतर पहुँचती है, उसे श्वास (Inhalation) और बाहर छोड़ने पर जो वायु भीतर से बाहर निकलती है, उसे प्रश्वास (exhalation) कहते हैं। प्राणायाम करने के लिए श्वास अन्दर लेना ‘पूरक’, श्वास को रोके रखने को ‘कुम्भक’ तथा श्वास को बाहर छोड़ना ‘रेचक’ कहलाता है। श्वास को बाहर रोककर रखने को ‘बाह्यकुम्भक’ कहते हैं तथा श्वास को अन्दर भरकर अन्दर ही रोककर रखना ‘अन्त: कुम्भक’ कहलाता है। इस प्रकार प्राणायाम करने के लिए पूरक, कुम्भक व रेचक क्रियाएँ की जाती हैं। अच्छी तरह प्राणायाम सिद्ध हो जाने पर, जब नियमित रूप से विधिपूर्वक प्राणायाम का अभ्यास किया जाता है, तब ततः क्षीयते प्रकाशावरणम् के अनुसार ज्ञानरूपी प्रकाश को ढकनेवाला अज्ञान का आवरण हट जाता है और धारणासु च योग्यता मनसः के अनुसार प्राणायाम सिद्ध हो जाने पर मन में योग के छठे अंग धारणा की योग्यता आ जाती है। संक्षेप में प्राणायाम के सतत अभ्यास से इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि प्राणायाम की निरन्तरता से प्रत्याहार, प्रत्याहार में निरन्तरता से धारणा, धारणा की निरन्तरता से ध्यान व ध्यान की निरन्तरता से समाधि की अवस्था की सहज उपलब्धि होती है। अतः अनुभव के आधार पर कहे सकते हैं कि प्राणायाम समाधि का बीजमंत्र है या प्राणायाम का परिणाम ही समाधि है। जब श्वास शरीर में आता है. तब मात्र वायु या ऑक्सीजन ही नहीं आती है, अपितु एक अखण्ड दिव्य शक्ति भी अन्दर जाती है, जो शरीर में जीवनी शक्ति को बनाये रखती है। प्राणायाम करना केवल श्वास का लेना और छोड़ना मात्र नहीं होता, बल्कि वायु के साथ ही प्राण-शक्ति या जीवनी शक्ति (vital force) को भी ग्रहण करना होता है। यह जीवनी-शक्ति सर्वत्र व्याप्त, सदा विद्यमान रहती है; जिसे हम ईश्वर, गॉड (God) या खुदा आदि जो भी नाम दें, वह परम शक्ति तो एक ही है और उससे ठीक से जुड़ना और जुड़े रहने का अभ्यास करना ही प्राणायाम है।