योग विज्ञान विभाग, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय एवं योग अध्ययन केंद्र, केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश के संयुक्त तत्वावधान में “वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्राकृतिक एवं वैकल्पिक चिकित्सा का स्वास्थ्य संरक्षण में योगदान”
विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं चिकित्सा कार्यशाला का आयोजन उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय में किया गया।
कार्यक्रम में देशभर से आए 250 से अधिक प्रतिभागियों ने सहभागिता की। संगोष्ठी का मुख्य विषय वैकल्पिक चिकित्सा रहा,
जिसके अंतर्गत प्रतिभागियों को विधिवत प्रशिक्षण प्रदान किया गया तथा शोध पत्रों का वाचन किया गया।
विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों से आए विशेषज्ञों ने स्वास्थ्य संरक्षण के विविध आयामों पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
सभी ने जोर दिया कि प्राकृतिक चिकित्सा ही स्वस्थ रहने का स्थाई विकल्प है।
स्वागत उद्बोधन में आयोजन सचिव प्रो. लक्ष्मीनारायण जोशी, डीन आधुनिक ज्ञान-विज्ञान एवं विभागाध्यक्ष, योग विज्ञान विभाग ने प्राकृतिक, योगिक,
आयुर्वेदिक एवं वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के समन्वय की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि वर्तमान समय में स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के समाधान के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाना अत्यंत आवश्यक है।
उन्होंने नाड़ी विज्ञान पर विस्तार से प्रकाश डाला तथा नाड़ी चिकित्सा के माध्यम से प्रतिभागियों का उपचार भी किया। उन्होंने कहा कि नाड़ी चिकित्सा से जटिल रोगों का स्थाई उपचार संभव है।
मुख्य अतिथि प्रो. ईश्वर भारद्वाज, डीन एकेडमी, देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार ने अपने संबोधन में कहा कि प्राकृतिक एवं वैकल्पिक चिकित्सा भारत की प्राचीन जीवनशैली का अभिन्न अंग रही है,
जिसे आज वैश्विक स्तर पर पुनः मान्यता मिल रही है। उन्होंने कहा कि बढ़ता तनाव, अनियमित दिनचर्या, प्रदूषण एवं जीवनशैली संबंधी विकार आधुनिक मानव के स्वास्थ्य के लिए गंभीर चुनौती बन चुके हैं।
ऐसे में योग, प्राणायाम, प्राकृतिक चिकित्सा एवं सनातन उपचार पद्धतियाँ मानवता के लिए आशा की किरण के रूप में उभर रही हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालयों को इस क्षेत्र में शोध को प्रोत्साहित करते हुए राष्ट्रीय स्तर की शोध परियोजनाएं प्रारंभ करनी चाहिए।
विशिष्ट अतिथि डॉ. कामाख्या कुमार, निदेशक, आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय ने कहा कि प्राकृतिक एवं वैकल्पिक चिकित्सा की सबसे बड़ी विशेषता इसकी सहजता एवं सुलभता है।
उन्होंने कहा कि ग्रामीण एवं दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले लोग महंगे आधुनिक उपचारों तक आसानी से नहीं पहुंच पाते,
ऐसे में योग, आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा उनके लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं।
उन्होंने पाठ्यक्रमों में व्यावहारिक प्रशिक्षण को और अधिक सशक्त बनाने पर भी जोर दिया, ताकि विद्यार्थी समाज में जन-जागरूकता बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभा सकें।
सारस्वत अतिथि प्रोफेसर सुरेंद्र कुमार त्यागी, पूर्व विभागाध्यक्ष, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय ने कहा कि स्वास्थ्य संरक्षण में प्राकृतिक चिकित्सा की भूमिका केवल उपचार तक सीमित नहीं है,
बल्कि यह दीर्घकालिक स्वास्थ्य संतुलन का प्रभावी माध्यम है। उन्होंने बताया कि वैश्विक स्तर पर औषधि-मुक्त स्वास्थ्य देखभाल की अवधारणा पर तेजी से कार्य हो रहा है, जिसमें योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा प्रमुख घटक के रूप में स्थापित हो रही हैं।
आयोजक सह सचिव डॉ. चर्चित कुमार ने शोधार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि प्राकृतिक एवं वैकल्पिक चिकित्सा के क्षेत्र में व्यापक शोध की संभावनाएं मौजूद हैं,
विशेषकर मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा, मानसिक तनाव एवं नींद संबंधी विकारों के संदर्भ में।
संगोष्ठी के दौरान अन्य विशेषज्ञों द्वारा प्राकृतिक चिकित्सा, योग चिकित्सा, आयुर्वेद, सुगंध चिकित्सा, जल चिकित्सा,
आहार चिकित्सा, पंचकर्म एवं आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान के समन्वित प्रभावों पर आधारित शोध निष्कर्ष प्रस्तुत किए गए।
प्रतिभागियों ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि प्रकृति आधारित उपचार सुरक्षित, सरल एवं दीर्घकालिक स्वास्थ्य संरक्षण में अत्यंत प्रभावी हैं।
कार्यक्रम के विभिन्न सत्रों में विशेषज्ञों द्वारा व्यावहारिक प्रदर्शन भी कराया गया,
जिसमें प्राकृतिक चिकित्सा के अंतर्गत मड थेरेपी, जल चिकित्सा, सूर्य चिकित्सा, योगासन एवं प्राणायाम की वैज्ञानिक विधियों को विस्तार से समझाया गया।
कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के प्राध्यापकगण डॉ. सूर्य प्रकाश रतूड़ी, डॉ. चंद्रशेखर शर्मा, डॉ. सुमन भट्ट, उपकुलसचिव संदीप भट्ट,
सहायक कुलसचिव संदीप कुमार, मीनाक्षी रावत, डॉ. जय कुंवर, दिशांत शर्मा, योगेश कुमार, गोरी, सौरभ शर्मा, राजेंद्र प्रसाद नौटियाल,
हिमांशु सहित अनेक शोध छात्र, विभिन्न संस्थानों से आए प्रतिनिधि, योग प्रशिक्षक तथा बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।