Inauguration :- गढ़वाली, कुमाऊँनी और जौनसारी भाषाओं को AI  से जोड़ने को भाषा डेटा कलेक्शन पोर्टल का शुभारंभ

देहरादून 01 नवंबर 2025।

देवभूमि उत्तराखंड की लोकभाषाओं में गढ़वाली, कुमाऊँनी और जौनसारी  को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से जोड़ने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया।

इस अवसर पर “भाषा डेटा कलेक्शन पोर्टल (Bhasha AI Portal)” का भव्य शुभारंभ अमेरिका के सिएटल और कनाडा के सरे-वैंकूवर में किया गया।

इस ऐतिहासिक लॉन्च का शुभारंभ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के वीडियो संदेश के माध्यम से हुआ।

मुख्यमंत्री ने इस पहल को “उत्तराखंड की सांस्कृतिक अस्मिता को डिजिटल युग से जोड़ने वाला युगांतकारी प्रयास” बताया और अमेरिका व कनाडा में रहने वाले उत्तराखंडी प्रवासियों को अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ दीं।

मुख्यमंत्री ने अपने संदेश में कहा

“जब तक हमारी भाषा जीवित है, हमारी संस्कृति जीवित है। उत्तराखंड सरकार सदैव अपनी मातृभाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए तत्पर है,

और इस ऐतिहासिक पहल में पूर्ण सहयोग करेगी।”

इस पोर्टल के माध्यम से गढ़वाली, कुमाऊँनी और जौनसारी भाषाओं के लगभग 10 लाख (1 मिलियन) शब्द,

वाक्य, कहावतें, और कहानियाँ एकत्र की जाएँगी, ताकि AI प्लेटफ़ॉर्म इनसे सीखकर भविष्य में हमारी भाषाओं में संवाद कर सकें।

यह ऐतिहासिक लॉन्च देवभूमि उत्तराखंड सांस्कृतिक सोसायटी कनाडा  द्वारा आयोजित भव्य कार्यक्रम में हुआ, जिसमें लगभग 4000 से अधिक प्रवासी उत्तराखंडी भाई-बहन उपस्थित रहे।

इस लॉन्चिंग में विशेष रूप से सम्मिलित रहे:

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (वीडियो संदेश), पद्मश्री प्रीतम भारतवाण (लोकगायक, जागर एवं ढोल सागर अकादमी),

सचिदानंद सेमवाल (AI आर्किटेक्ट, अमेरिका), अमित कुमार, सोसाइटी के अध्यक्ष बिशन खंडूरी, टोरंटो से मुरारीलाल थपलियाल, एवं भारत दूतावास के प्रतिनिधिगण।

पद्मश्री प्रीतम भारतवाण ने कर्णप्रयाग (बद्रीनाथ क्षेत्र) से ऑनलाइन जुड़कर अपने संदेश में कहा —

“जब तक हमारी भाषा जीवित है, हमारी संस्कृति और हमारी पहचान जीवित है। भाषा बचेगी तो संस्कार भी बचेंगे।”

उन्होंने इस पहल को ऐतिहासिक बताते हुए अपनी जागर एवं ढोल सागर अकादमी की ओर से निरंतर सहयोग देने की घोषणा की।

सचिदानंद सेमवाल (AI आर्किटेक्ट, अमेरिका) ने कहा —

“यह केवल एक तकनीकी परियोजना नहीं, बल्कि हमारी जड़ों से जुड़ने और उन्हें आने वाली पीढ़ियों तक जीवित रखने का एक जन-आंदोलन है।

मेरे 20 वर्षों से अधिक के इंजीनियरिंग अनुभव और 4 वर्षों से अधिक के AI अनुभव का उपयोग यदि अपनी मातृभाषा के संरक्षण में हो रहा है, तो इससे बड़ा सौभाग्य मेरे जीवन के लिए और क्या होगा।

इस पहल को हम एक सामाजिक आंदोलन के रूप में चलाएँगे और जो भी इसमें जुड़ना चाहेगा उसका स्वागत है — चाहे वह इंजीनियर हो, भाषा विशेषज्ञ, लोक कलाकार, समाजसेवी या व्यवसायी।”

देवभूमि उत्तराखंड सांस्कृतिक सोसायटी कनाडा के अध्यक्ष बिशन खंडूरी जी ने कहा कि “यह हमारे लिए गर्व का विषय है कि इस ऐतिहासिक लॉन्च की मेजबानी का अवसर हमारी संस्था को मिला।

यह पहल विदेशों में रह रहे सभी उत्तराखंडियों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़े रखेगा।”

कार्यक्रम के दौरान सोसाइटी ने यह भी घोषणा की कि —

कनाडा और अमेरिका में “AI सक्षम भाषा शिक्षण केंद्र” (AI-enabled Learning Centers) स्थापित किए जाएँगे,

जहाँ प्रवासी बच्चे आधुनिक तकनीक की सहायता से गढ़वाली, कुमाऊँनी और जौनसारी भाषाएँ सीख सकेंगे। ये केंद्र पद्मश्री प्रीतम भारतवाण जी की जागर अकादमी से संबद्ध रहेंगे।

इस अवसर पर सोसाइटी के पदाधिकारी उपस्थित रहे —

श्री शिव सिंह ठाकुर (उपाध्यक्ष), विपिन कुकरेती (महामंत्री), उमेद कठैत, जगदीश सेमवाल, रीश रतूड़ी, रमेश नेगी, जीत राम रतूड़ी,  विनोद रौंतेला, तथा,

देवभूमि उत्तराखंड सांस्कृतिक सोसायटी कनाडा के सभी सदस्य।

इस अवसर पर भारत से ऑनलाइन जुड़े मस्तू दास, शक्ति प्रसाद भट्, के. एस. चौहान, तथा प्रोजेक्ट की कोर टीम, जिन्होंने इस ऐतिहासिक पहल को दिशा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

कनाडा के स्थानीय मीडिया, भारतीय दूतावास के प्रतिनिधि, AI विशेषज्ञों, सांस्कृतिक संगठनों और बड़ी संख्या में प्रवासी उत्तराखंडियों की उपस्थिति ने इस आयोजन को ऐतिहासिक बना दिया।

“यह पहल केवल तकनीकी नहीं, बल्कि अपनी पहचान और लोक विरासत को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का एक जन आंदोलन है।”

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