देहरादून – शीतली प्राणायाम -ध्यानोपयोगी आसन में बैठकर हाथ घुटनों पर रखें। जिह्वा को नालोपुमा बोड़कर मुंह खुला रखते हुए मुँह से पूरक करें।
जीभ (जिह्वा) से धीरे-धीरे श्वास लेकर कंफड़ों को पूरा भरें। कुछ क्षण रोककर मुँह को बन्द करके दोनों नासिकाओं में रेचक करें। पश्चात् जिह्वा मोड़कर मुँह से पूरक एवं नाक से रेच्चयक करें।
इस तरह 5 से 10 बार रोग या आवश्यकतानुसार कर सकते हैं। शीतकाल में इसका अभ्यास कम करें।
विशेष
कुम्भक के साथ जालन्धर बन्ध भी लगा सकते हैं। कफ प्रकृतिवालों एवं उन्सिल के रोगियों को शीतली और सीत्कारी प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
इस आसन को करने से लाभ जिह्वा. मुँह एवं गले के रोगों में लाभप्रद है। गुल्म, प्लोहा, ज्वर, अजीर्ण आदि ठीक होते हैं।
इसकी सिद्धि से भूख-प्यास पर विजय प्राप्त होती है. ऐसा योगग्रन्थों में कहा गया है।
उच्च रक्तचाप को कम करता है। पित्त के रोगों में लाभप्रद है। रक्तशोधन भी करता है।