Dehradun- प्राणायाम की छठ़ी प्रक्रिया में भ्रामरी प्राणायाम आता है इसमें सांस पूरा अन्दर भरकर मध्यमा अंगुलियों से नासिका के मूल में आँख के पास से दोनों ओर से थोड़ा दबाएँ, मन को आज्ञाचक्र पर केन्द्रित रखें।
अंगूठों से दोनों कानों को पूरा बन्द कर लें अब (भ्रमर) भंवरे की भाँति तरह से गुंजन करते हुए नाद रूप में ‘ओ३म्’ का उच्चारण करते हुए श्वास को बाहर छोड़ दें। पुनः इसी प्रकार दोहराते हुए कई बार करें।
भ्रामरी प्राणायाम के दौरान शिवसंकल्प करें
यह प्राणायाम अपनी चेतना ब्राह्मी चेतना, ईश्वरीय सत्ता के साथ तन्मय एवं तद्रूप करते हुए करना चाहिए। मन में यह दिव्य संकल्प या विचार होना चाहिए कि मुझपर भगवान् की करुणा, शान्ति तथा आनन्द बरस रहा है।
मेरे आज्ञाचक्र में भगवान् दिव्य ज्योति के रूप में प्रकट होकर मेरे समस्त अज्ञान को दूर कर मुझे ‘ऋतम्भरा प्रज्ञा’ से सम्पन्न बना रहे हैं। इस प्रकार शुद्ध भाव में यह प्राणायाम करने से एक दिव्य ज्योतिपुंज आज्ञाचक्र में प्रकट होता है और ध्यान स्वतः होने लगता है।
प्रामरी प्राणायाम का समय
3 से 5 सेकण्ड में श्वास को अन्दर भरना एवं विधिपूर्वक कान, आंख बादि बन्द करके 15 से 20 सेकण्ड में श्वास बाहर छोड़ना। एक बार भ्रामरी पुण होने पर तुरन्त पुनः 3 से 5 सेकण्ड में एक लय के साथ श्वास अन्दर भरना ए पुनः 15 से 20 सेकण्ड में भ्रमर की ध्वनि को करते हुए विधिपूर्वक श्वास को बाहर छोड़ना।
इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को लगातार कम से कम 5 से 7 बार भ्रामरी प्राणायाम अवश्य करना चाहिए। यह पूरी प्रक्रिया लगभग 3 मिनट में पूरी हो जाती है।
कैंसर, डिप्रेशन, पार्किंसन, माइग्रेन, हृदय रोग, नेत्र रोग एवं अन्य किसी असाध्य रोग से पीड़ित रोगी या योग की गहराइयों में उतरने के इच्छुक योगी 11 से 21 बार तक भी भ्रामरी प्राणायाम कर सकते हैं।
इस आसन को करने से लाभ
मन की चंचलता दूर होती है। मानसिक तनाव, उत्तेजना, उच्च रक्तचाप, हृदयरोग आदि में लाभप्रद है। ध्यान के लिए अति उपयोगी है।
