शवासन और कपालभाति करने से होते हैं यह लाभ लाभ

देहरादून – “शवासन” यानि शव शब्द का अर्थ मृत देह है। इस आसन में अंतिम अवस्था एक मृत देह जैसी होती है। शारीरिक स्थितिः निष्क्रिय शिथिल स्थिति।

              ‘इस आसन को करने से लाभ’

सभी प्रकार के तनावों से मुक्त करता है।शरीर तथा मस्तिष्क दोनों को आराम प्रदान करता है।पूरे मनो-कायिक तंत्र को विश्राम प्रदान करता है।

बाहरी दुनिया के प्रति लागातार आकर्षित होने वाला मन अंदर की ओर गमन करता है। इस तरह धीरे-धीरे महसूस होता है कि मस्तिष्क स्थिर हो गया है।

अभ्यासकर्ता बाहरी वातावरण से अलग होकर शांत बना रहता है।तनाव एवं इसके परिणामों के प्रबंधन में यह बहुत लाभदायक होता है।

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“कपालभाति”

इस आसन को करने के लिए शारीरिक स्थिति  कोई भी ध्यानात्मक आसन जैसे सुखासन/पद्मासन/ वज्रासन आदि पर बैठे,

‘इस आसन को करने के लाभ’

कपालभाति कपाल को शुद्ध करता है कफ विकारों को समाप्त करता है। यह जुकाम, साइनोसाइटिस, अस्थमा एवं श्वास नली संबंधी संक्रमणों में लाभदायक है।

यह पूरे शरीर का कायाकल्प करता है और चेहरे की चमक और दीप्तिमान बनाए रखता है।यह तंत्रिका तंत्र को और साथ ही साथ पाचन अंगों को शक्तिशाली बनाता है।

नाडी शोधन अथवा अनुलोम विलोम प्राणायाम

इस प्राणायाम की मुख्य विशेषता है कि बाएं एवं दाएं नासिकारन्धों से क्रमवार श्वास-प्रश्वास को रोककर अथवा बिना श्वास-प्रश्वास रोके श्वसन किया जाता है। शारीरिक स्थितिः कोई भी ध्यानात्मक आसन ।

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इस प्राणायाम का मुख्य उद्देश्य शरीर में ऊर्जा वहन करने वाले मुख्य स्रोतों का शुद्धिकरण करना है। अतः यह अभ्यास पूरे शरीर का पोषण करता है।

मन में निश्चलता लाता है और शांति प्रदान करता है साथ ही एकाग्रता बढ़ाने में भी सहायक है।जीवन शक्ति बढ़ाता है और तनाव एवं चिंता के स्तर का कम करता है।यह कफ विकार को भी कम करता है।

 

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