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प्राणरूपी माता से भी हमें नवजन्म मिलता

देहरादून – प्राणायाम का अनुभूत सत्य 3 वर्ष की आयु से बच्चे प्राणायाम एवं सूक्ष्म व्यायाम कर सकते हैं एवं वृद्ध पुरुष भी अन्तिम श्वास तक प्राणायाम अवश्य करें। बच्चों की आसनों का अभ्यास 5 वर्ष की आयु से प्रारंभ करना चाहिए।

5 से 10 वर्ष तक के बच्चों को भस्त्रिका । मिनट, कपालभाति 5 बार, बाह्य प्राणायाम 3 बार, अनुलोम-विलोम 5 मिनट, भ्रामरी व उद्‌गीथ 3 से 5 बार एवं 1 से 2 मिनट प्रणव प्राणायाम अवश्य करना चाहिए। इससे वे बलवान्, प्रज्ञावान्, बुद्धिमान्, चरित्रवान्, ऊर्जावान्, साहसी, पराक्रमी, स्वाभिमानी, कर्मठ व पुरुषार्थी बनेंगे। प्राणायाम से बच्चों का सैल्फ डिसीप्लिन व सैल्फ डिसीप्लीन    व सैल्फ कॉन्फीडेंस बढ़ेगा। प्राणायाम से बच्चों का कन्सेन्ट्रेशन भी बढ़ता है। अत: आई क्यू लेवल बढ़ेगा एवं आईसाइट व हाइट सदा अच्छी रहेगी। बच्चों में गुस्सा, हिंसा, अपराध व उच्छृङ्खलता नहीं रहेगी अपितु वे शान्त, संवेदनशील, सहिष्णु, प्रेम, करुणा, वात्सल्य से भरे हुए राष्ट्रभक्त, गुरुभक्त एवं मातृ-पितृभक्त बनेंगे।

10 से 18 वर्ष के बच्चों को भस्त्रिका 2 मिनट, कपालभाति व अनुलोम-विलोम 10-10 मिनट; बाह्य, भ्रामरी व उद्‌गीथ 5-5 बार एवं प्रणव प्राणायाम 2 से 3 मिनट तक करना चाहिए। एक स्वस्थ व्यक्ति यदि मात्र 5-5 मिनट भी कपालभाति व अनुलोम-विलोम प्राणायाम करता है तो  वह निश्चित ही रोगग्रस्त व तनावग्रस्त होने से बच सकता है।

यदि 10-10 मिनट कपालभाति, अनुलोम-विलोम करता है तो भोग भोगता हुआ भी रोगी होने से बच सकता है अन्यथा बिना योग के  भोग रोग पैदा करेंगे। यदि 15-15 मिनट कपालभाति, अनुलोम-विलोम करता है तो बी.पी., शुगर, अस्थमा, थायरॉयड, ज्वाइन्ट पेन, गैस, कब्ब अम्लपित्त आदि सामान्य रोगों से मुक्त हो जाता है और 30-30 मिन्ट कपालभाति, अनुलोम-विलोम करने से कैंसर जैसे असाध्य रोगों से में मुक्त हो जाता है।

कैंसर, सफेद दाग, सोरायसिस व रूमेटिक ऑर्थराइटिस आदि असाध्य रोग में निम्नलिखित समयानुसार अभ्यास से रोगियों को नया जीवन मिलता है। संक्षेप में ऋषि मुनियों के अनुभव के आधार पर कहे सकता है कि डेढ़ डेढ़ घंटा सुबह-शाम प्रतिदिन कुल लगभग 3 घंटा प्राणायाम करने से 9 माह में सभी ही प्राणायाम लगभग 11 लाख की संख्या में निष्पन्न हो जाते हैं।

प्राणायाम का अनुष्ठान करने वाला कैंसर,सफेद दाग, मल्टीपल स्क्लेरोसिस, सोरायसिस,एस एल ई, व रूमेटिक, ऑर्थराइटिस जैसी असाध्य बीमारियों से मुक्त हो जाता है। इस अवधि में साधक को जो मानसिक व आध्यात्मिक लाभ होगा वह अनिर्वचनीय है  प्राचीन काल में गायत्री व महामृत्युंजय आदि के 11-11 लाख के जप व यज्ञ आदि के अनुष्ठान की सिद्धियों का वर्णन आती है। उन अनुष्ठानों से क्या-क्या सिद्धियाँ मिलती हैं यह एक विचारणीय विषय हो सकता है। परन्तु प्राणायाम के 11 लाख के अनुष्ठान की सिद्धियों के लाभ के चमरत प्रमाण हैं।

इसमें मुख्यतः कपालभाति लगभग 9 लाख बार एवं अनुलोम विलोम का लगभग 51 हजार बार अभ्यास होता है व लगभग 9 माह तक का यह अनुशन व्यक्ति को एक नया जन्म देता है। जैसे कि माँ के उदर से बच्चे का नौ माह में जन्म होता है वैसे ही प्राणरूपी माता से भी हमें नवजन्म मिलता है। जैसा कि छान्दोग्य उपनिषद् का ऋषि कहता है ‘प्राणः पिता प्राणो माता’ अर्थात् प्राण माता-पिता हैं। जैसे माता-पिता के मिलन से संतान उत्पन्न होती है वैसे ही प्राण रूपी माता-पिता हमें एक नया जन्म देते हैं। यदि माता-पिता के शरीर में भी हमारे शरीर या चित्त में कोई वंशानुगत रोग या चित्तवृत्ति दोष आया है तो योग से उसका भी निराकरण करता है। माता-पिता से वंशानुगत प्राप्त उच्च रक्तचाप, चर्म रोग, अस्थमा व आर्थराइटिस जैसी बीमारियों एवं काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार आदि चित्तवृत्ति दोष भी जो सन्तति में माता-पिता से आ गये थे, वे प्राणायाम के सतत अभ्यास से मिट गये।

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