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DehradunNews:-कुण्डलिनी जागरण के उपाय भाग चार

देहरादून – प्राण-साधना का निरन्तर पूरी लगन से अभ्यास करते हुए ज्यों-ज्यों तमस् का आवरण क्षीण हो जाता है, मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र एवं ऊपर सहस्त्रार चक्र तक सभी चक्र प्रकाशित होने लगते हैं।

प्रारम्भ में  प्राणायाम-सिद्धि पर प्रकाशित हुए चक्रों का पूर्व रूप प्रदर्शित कर रहा है। सबसे निचला ‘मूलाधार चक्र’ का पूर्व रूप प्रदर्शित कर रहा है। सबसे निचला ‘मूलाधार चक्र’ होमकुण्ड-सम तथा इससे ऊपर ‘स्वाधिष्ठान चक्र’ है।

इससे ऊपर नाभि में स्थित ‘मणिपूर चक्र’ है, नाड़ियों से घिरे इस चक्र में से उठती लहरी अनाहत शब्द को है, इससे ऊपर वक्ष (छाती) में दीपशिखा-सम प्रकाशित ‘हृदय चक्र’ एवं ‘अनाहत चक्र’ हैं, कण्ठे के समान दिख रहे कण्ठ में विशुद्धि चक्र और सबसे ऊपर कमल में सूर्य-सम प्रकाशित ‘सहस्त्रार’ है।

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