Kalapani:- बटोली गाँव के लोग झेल रहे कालापानी जैसी सजा

देहरादून,02/जुलाई/2025।

संकट में बटोली गाँव, सहसपुर विधानसभा में इस गांव के लोग झेल रहे कालापानी जैसी सजा, आवाजाही के लिए कर रहे मौत की गहरी खाई को पार,

सिस्टम ने इस गाँव को खुद के हाल पर छोड़ा यह दुर्भाग्य ही है कि देहरादून से महज 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सहसपुर विधानसभा के दूरस्थ गांव बटोली अपना अस्तित्व बचाने के लिये जूझ रहा है।

बटोली गाँव के ग्रामीण इन दिनों बड़ी परेशानी से घिरे हुए हैं और ये परेशानी इन ग्रामीणों के लिये सजा ऐ काला पानी जैसी साबित हो रही है।

इस गाँव के ग्रामीण बरसात के दिनों में घरों में कैद हो जाते हैं, पूर्व में ये मुद्दा गरमाने के बाद जब समस्या का कोई स्थाई हल नहीं निकला तो  ग्रामीणों को अस्थाई रूप से विस्थापित करने की बातें हुई,

लेकिन शासन प्रशासन और स्थानीय विधायक इसे हकीकत का रूप देने में अब तक विफल साबित हुए है तो विपक्ष भी इस मुद्दे को लेकर मौन है।

विपक्ष का कोई नेता आज तक इस गांव में ग्रामीणों के हालात जानने तक नहीं पहुंचा ना कोई इन मुट्ठी भर ग्रामीणों का दर्द नहीं बांट रहा है। दरअसल बटोली गांव और कोटी गांव के बीच पिछले 35 सालों से एक लैंड स्लाइड जोन बना हुआ है,

जहां पहाड़ का ऊपरी हिस्सा हर साल टूटकर मलबे के रूप में आता रहता है और लगभग चार माह के लिये ये यहां बनाया गया अस्थाई मार्ग पूरी तरह से बंद हो जाता है, लेकिन इस बार जो हालात हैं, वो रूह कंपा देने वाले हैं,

दरअसल यहां जमे हुए पुराने मलबे का पूरा पहाड़ रातों रात खिसक गया, जिसके चलते अब एक भयावह विशाल खाई यहां बन गई है। बटोली गांव से मुख्यालय का संपर्क पूरी तरह से कट चुका है,

बावजूद इसके‌ ग्रामीण मजबूरी में जान को जोखिम में डालकर इस मौत की खाई से आना जाना कर रहे हैं।

ग्रामीण चार माह का राशन लेकर गांव में कैद हो जाने को मजबूर हैं। दुर्गम क्षेत्र में स्थित यह सुंदर गांव इस विकट समस्या के कारण वर्तमान में नरक का द्वार साबित हो रहा है।

किसी भी आपातकाल की स्थिति में कौन जिम्मेदार होगा ये बड़ा सवाल भी बना हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि पूर्व में भाऊवाला में सरकार द्वारा आयोजित बहुउद्देशीय शिविर में स्थानीय विधायक सहदेव पुंडिर की मौजूदगी में ग्रामीणों को अस्थाई रूप से विस्थापन करने की बात की गई थी।

जिस पर सहमति भी बन गई थी, लेकिन आज तक इस दिशा में ना तो स्थानीय विधायक और ना शासन प्रशासन ने कोई ठोस कदम उठाए। करीब 35 साल से ग्रामीण इस समस्या का सामना कर रहे हैं।

अब सवाल यह उठता है कि कोई हादसा होने पर ही क्या स्थानीय विधायक और शासन प्रशासन चेतेगा।

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