देहरादून – प्राणायाम की विभिन्न विधियाँ शास्त्रों में वर्णित हैं और प्रत्येक प्राणायाम का अपना एक विशेष महत्त्व है, इसलिए प्रतिदिन सभी प्राणायामों का अभ्यास नहीं किया जा सकता।
अतः हमने गुरुओं की कृपा एवं अपने अनुभव के आधार पर प्राणायाम की एक सम्पूर्ण प्रक्रिया को विशिष्ट वैज्ञानिक रीति एवं आध्यात्मिक विधि से आठ प्रक्रियाओं में निबद्ध किया है। प्राणायाम के इस सम्पूर्ण अभ्यास को करने से जो मुख्य लाभ होते हैं, वे संक्षेप में इस प्रकार हैं।
वात, पित्त और कफ, इन तीनों दोषों का संतुलन होता है।पाचनतन्त्र पूर्ण स्वस्थ हो जाता है तथा समस्त उदररोग दूर होते हैं।हृदय, फेफड़े एवं मस्तिष्क सम्बन्धी समस्त रोग दूर होते हैं।मोटापा, मधुमेह, कॉलेस्ट्रॉल, कब्ज़, गैस, अम्लपित्त, श्वास रोग, एलजी, माइग्रेन, रक्तचाप, किडनी के रोग, पुरुष और स्त्रियों के समस्त यौन रोग, सामान्य रोगों से कैन्सर तक सभी साध्य-असाध्य रोग दूर होते हैं।
रोग-प्रतिरोधक क्षमता अत्यधिक विकसित हो जाती है।वंशानुगत डायबिटीज़ एवं हृदयरोग आदि से बचा जा सकता है।बालों का झड़ना और सफेद होना, चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ना, नेत्रज्योति के विकार, स्मृति-दौर्बल्य आदि से बचा जा सकता है, अर्थात् बुढ़ापा देर से आयेगा तथा आयु बढ़ेगी।
मुख पर आभा, ओज, तेज एवं शान्ति आयेगी।चक्रों के शोधन, भेदन तथा जागरण द्वारा आध्यात्मिक शक्ति (कुण्डलिनी- जागरण) की प्राप्ति होगी।मन अत्यन्त स्थिर, शान्त और प्रसन्न तथा उत्साहित होगा, डिप्रेशन आदि रोगों से बचा जा सकेगा।
ध्यान स्वतः लगने लगेगा तथा घण्टों तक ध्यान का अभ्यास करने का सामर्थ्य प्राप्त होगा।स्थूल एवं सूक्ष्म देह के समस्त रोग और काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार आदि दोष नष्ट होते हैं।शरीरगत समस्त विकार, विजातीय तत्त्व, टाक्सिन्स नष्ट हो जाते हैं।
नकारात्मक विचार समाप्त होते हैं तथा प्राणायाम का अभ्यास करने वाला व्यक्ति सदा सकारात्मक विचार ऊर्जा एवं आत्मविश्वास से भरा हुआ होता है।