“भजनसिंह ‘सिंह’ पुरस्कार” गढ़वाली बोली- भाषा में दीर्घकालीन साहित्य सेवा के लिए।
देहरादून – भजनसिंह सिंह का जन्म 29 अक्टूबर 1905 में हुआ। उनका जन्म कफोला वंश के अध्यापक पिता रतनसिंह बिष्ट के परिवार पौड़ी जनपद पट्टी सितोनस्यू ग्राम कोटसाड़ा में हुआ था।
जन्मते ही माता के स्वर्ग सिधारने से बुआ के असीम लाड-प्यार तथा पिता के अनुशासन में बालक भजनसिंह तपे हुए सोने की भांति निखरता चला गया। परिवार की दुर्लभ आर्थिक स्थिति के साथ ही स्वाध्याय एवं परिश्रम के बल पर भजन सिंह ने अपने विशिष्ट व्यक्तित्व का निर्माण किया।
देश की पुरातन सभ्यता एवं संस्कृति से उन्हें विशेष लगाव था, साथ ही हिन्दी तथा गढ़वाली भाषा के संवर्धन में उन्हें गहरी एवं समान रूचि थी। समाज के असहाय और निर्बल वर्ग के प्रति गहरी संवेदना थी। सामाजिक बुराईयों, अंधविश्वासों एवं कट्टरपंथियों के वे सदैव घोर विरोधी रहे।
अराष्ट्रीय, अमानवीय तथा अवैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रति विद्रोही किन्तु संयत तेवरों के कारण ही समालोचकों ने उन्हें “मर्यादित विद्रोही ही अथक साधक” कहा। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण ‘सिंह’ ‘उत्तराखण्डी कबीर कहलाए। सिंह जी ने ‘लोकगीत’ एवं ‘लोकोक्ति संकलन द्वारा भी गढ़वाली साहित्य की भी वृद्धि की है।
गढ़वाली कविता में काव्यशास्त्रीय परम्पराओं यथा-राग, रस-छन्द, अंलकार तथा गजलों, बहरे तबील आदि के प्रयोगों ने गढवाली कविता को अनूठी प्रौढ़ता एवं लोकप्रियता प्रदान की। उनकी अनेक गढ़वाली कविताएं गढ़वाल के लोकगीतों की भांति प्रसिद्ध हैं।
उनका खुदेड़-बेटी गीत-
बीडी-बॉडी एगे ब्वै, देख पूश मैना।
गौं कि बेटी ब्वारी ब्वै मैत आई गैना। (सिंहनाद)
इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
भजनसिंह की गढ़वाल के वैभवशाली अतीत के प्रति गहरी जिज्ञासा थी। उन्होंने उत्तराखण्ड के इतिहास के विवादित विषय “आर्यों का आदि निवास’ को लेकर तीस (30) वर्षों के गहन अध्ययन, मनन, अनुसंधान द्वारा इस संबंध में भ्रामक तथ्यों को दूर करने का प्रयास किया
और भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों एवं ग्रन्थों के सुस्पष्ट तथ्यों तथा प्रमाणों के साथ “आर्यों का आदि निवास मध्य हिमालय” सिद्ध किया। इसी क्रम में उनकी ‘उत्तराखण्ड के वर्तमान निवासी, गढ़वाल और उसकी कानूनी ग्रन्थ,’ ‘कालिदास के ग्रंथो में गढवाल आदि शोधपूर्ण लघु पुस्तकें प्रकाशित हुई।
गद्य एवं पद्य विधाओं को मिलाकर उन्होंने गढ़वाली एवं हिन्दी की 20 से अधिक कृतियों के माध्यम से साहित्य की महान सेवा की।
साहित्यकार गिरीश सुन्दरियाल को साहित्य क्षेत्र में “भजन सिंह” पुरस्कार प्रदान किया गया,उनका जीवन परिचय इस प्रकार से है पिता का नाम भगतराम सुन्दरियाल माता का नाम बच्ची देवी, स्थायी निवास का पता ग्राम-चुरेड़ागांव पत्रालय जगस्याखाल तहसील चौबट्टाखाल जिला पौडी गढ़वाल।
इनका कार्यक्षेत्र अध्यापन का है और शिक्षा बी. एस.सी. एम.ए (अंग्रेजी हिन्दी संस्कृत) बीएड,पूर्व में प्राप्त सम्मान इस प्रकार से है गीत प्रतियोगिता अखिल गढ़वाल सभा देहरादून प्रथम पुरस्कार) लोकभाषा सम्मान भयात सम्मान दयाल सिंह असवाल सम्मान विद्या भारती सम्मान, प्रकाशित पुस्तकों के नाम अन्वार (कविता संग्रह)
मौल्यार साजिलु सिंगार, आला उज्याला दिन (गीत संग्रह) असगार (नाटक संग्रह) कब खुललि रात (नाटक संग्रह) हवेली स्वां, उड़ि जो अगास (गीति काव्य संग्रह), कुटमुणि (बच्चों की कविता संग्रह) पैतुलयूं पराज ग़ज़ल संग्रह आदि।