देहरादून – श्वसन संस्थान का प्रमुख कार्य शरीर की कोशिकाओं के लिए आक्सीजन की पूर्ति करना तथा कार्बन डाइऑक्साइड को निष्कासित करना है, किन्तु यहां तथ्य भी अवलोकनीय है कि कार्बन डाइऑक्साइड की एक नियत मात्रा रक्त में रहना आवश्यक है। श्वसन संस्थान में श्वसन क्रिया को निम्नलिखित शारीरिक अंगों का महत्वपूर्ण योगदान है।
मुखगुहा,. ग्रसनी, श्वसन नलिका, प्रथम श्वसनिकायें,द्वितीय श्वसनिकायें,श्वसननकोष,श्वसन-कोष श्वसन तंत्र की सबसे सूक्ष्म इकाई है जहां पर O व CO2, का आवागमन होता है। लगभग 30 करोड़ श्वसन-कोष एक फेफड़े में उपस्थित होते हैं। इनका सही क्षेत्रफल 75-100 वर्ग मीटर होता है।O तो श्वसन-कोष से रक्त में आ जाता है तथा CO2, रक्त से श्वसन-कोष में चला जाता है।
स्वास एवं प्रश्वास के मध्य पसलियाँ तथा स्टर्नम (sternum)उठ जाते है तथा महाप्राचीरा पेशी नीचे की ओर दब जाती है जिससे वक्ष की लम्बाई बढ़ जाती है तथा फंफड़ों में दबाव कम हो जाता है और ऑक्सीज फंफड़ों के भीतर प्रवेश कर जाती है। श्वसन संस्थान की सबसे प्रमुख इकाई महाप्राचीरा पेशी होती है। यह पेशी उदरगुहा, फुफ्फुस, गुहा तथा मेरूदण्ड को आपस में जोड़ने का कार्य करती है। हमारे द्वारा प्रतिपादित यौगिक क्रियाओं से इसी महाप्राचीरा पेशी में संकुचन एवं प्रसारण की क्रिया होती है। प्राणायाम में हमें धीमी तथा गहरी सांस लेने का दिशा-निर्देश दिया है, जिस के कारण ही महाप्राचीरा पेशी नीचे खींच जाती है तथा प्राण वायु का संचालन अधिकतम होता है।
श्वसन के दौरान, छाती की विभिन्न मांसपेशियों की स्थिति
ऑक्सीजन शरीर कोशिकाओं के कार्यरत होने को परम आवश्यक तत्व है , जिस क्रिया में ऑक्सीजन की मात्रा फेफड़ों में बढ़ जाती है तथा कार्बन ऑक्साइड का निष्कासन फेफड़ों से अधिक होता है, उस किया को प्राणायाम कहा जाता है। प्राणायाम से रक्त में ऑक्सरीजन का स्तर प्रचुर मात्रा में बढने के साथ-साथ कार्बन डाइऑक्साइड के निष्कासन का स्तर भी बढ़ जाता है। यहां अब यह जानना बहुत आवश्यक है कि ऑक्सीजन का कोशिकाओं पर किस-किस रूप में क्रियात्मक प्रभाव पड़ता है।
प्राणायाम के क्रियात्मक प्रभाव
प्राणायाम से निम्न क्रियात्मक प्रभाव शरीर में देखे जा सकते हैं। दहन को ऑक्सीजन की अधिक मात्रा में उपलब्धता। लसीका तंत्र (Lymphatic system) में सम्बन्धित লাभ।मस्तिष्क एवं नाड़ी संस्थान (Brain & Nervous system) सम्बंधित लाभ
ऑक्सीजन का सम्यक दहन,
ऑक्सीजन के बिना मनुष्य के सभी संस्थान अल्प समय में अव्यवस्थित होकर मृत्यु को प्राप्त हो सकते हैं। अत: यह एक सामान्य रूप में सब संस्थानों के लिए महत्व की बात है कि यदि शरीर को किसी प्रकार से अधिक ऑक्सीजन प्राप्त होगी तो यह शरीर के सभी अवययों की व्याधियों के लिए एक औषधि की तरह कार्य करेगी, तथा जो व्याधियाँ कोशिकाओं को ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति के अभाव के कारण उत्पन्न होती हैं, उन व्याधियों को भी ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा में दूर किया जा सकता है। जब मनुष्य कोई भी शारीरिक कार्य सम्पन्न करता है तो उस समय शरीर में ऑक्सीजन की अधिक आवश्यकता होती है आधुनिक अनुसंधानों से यह तथ्य स्थापित किया जा चुका है कि किसी में प्रकार के शारीरिक कार्य से रक्त में ऑक्सीजन की मांग बढ़ने के साथ-साथ ऑक्सीजन का निर्यात्रत दहन भी होता है। आधुनिक अनुसंधान व चिकित्स परीक्षण यह तथ्य भी स्थापित करते हैं कि शरीर में उत्पन्न होने वाले विभिन रोगों का कारण ऑक्सीजन का ठीक प्रकार से दहन न होना है। इसके साथ कुछ समय पूर्व अनुसंधान से यह भी साबित हो चुका है कि अत्यधिक क्षयज रोग तथा इसी प्रकार की अन्य व्याधियों का प्रमुख कारण ऑक्सीजन की अल्प उपलब्धता भी है।
प्राणायाम के नियमित अभ्यास से ऑक्सीजन की संतुलित आपूर्ति होती है जिससे ऊर्जा की उत्पत्ति होती है। ऊर्जा की उत्पत्ति प्रक्रिया में साथ-साथ कोशिकाओं में जल की भी उत्पत्ति होती है जो लसीका (Lymph) के सम्यक् प्रवाह में सहायक होती है।
ऊर्जा उत्पत्ति
शरीर की कोशिकाओं के सभी कार्यों के लिए तथा शरीर का तापमान नियमन को संपूर्ण ऊर्जा ऑक्सीजन तथा शर्करा की रासायनिक प्रक्रिया से उत्पन्न होती है। जब-जब शरीर की सामान्य चयापचय गति बढ़ती है तब-तब उसके साथ ऑक्सीजन की आवश्यकता भी बढ़ती है। उस बढ़ी हुई ऑक्सीजन की आवश्यकता की पूर्ति के लिए श्वास-प्रश्वास की गति में भी वृद्धि हो जाती है जिसे निम्न क्रिया द्वारा समझा जा सकता है।
ईधन अर्थात् ग्लूकोज +ऑक्सीजन = ऊर्जा+ कार्बन डाइऑक्साइड +पानी
जल उत्पत्ति
दूसरा महत्वपूर्ण लाभ जो प्राणायाम के अभ्यास से ऑक्सीजन के दहन से प्राप्त होता है वह लसीका तंत्र से संबंधित है। जैसे-जैसे ऑक्सीजन का अधिक मात्रा में कोशिकाओं द्वारा उपयोग होता है वैसे-वैसे शरीर में जल की मात्रा बढ़ जाती है तथा यह जल हमारे शरीर की आंतरिक सफाई में उपयोगी साबित होता है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता
भस्त्रिका प्राणायाम में जब श्वास भरने की क्रिया की जाती है तब रक्तदाब भी बढ़ जाता है। इसी प्रकार जब प्रश्वास की क्रिया की जाती है, तब रक्तदाब कम होता है। यदि नियमित रूप से केवल 5 मिनट यह अभ्यास चलता रहे तो हमें उदरगत सभी अवयवों में, जिसमें अन्तःस्रावी ग्रन्थियां भी हैं, स्पन्दन महसूस होता है।
साधारणतः एक सामान्य श्वसनचक्र में हम 500ml (Tidal Volume) वायु का उपयोग करते हैं। जबकि अध्ययनों के अनुसार यदि हम गहरा श्वास भरते है तो यह मात्रा 4 हजार 500 ml तक हो सकती है बल्कि किसी के फेफड़ों में पर्याप्त क्षमता हो तो Vital Capacity 8000 ml (8 लीटर) भी हो सकते है। इस प्रकार गहरा श्वास लेने से तथा बलपूर्वक श्वास बाहर करने से रक्त में O का स्तर बढ़ जाता है जिसके कारण कोशिकीय स्तर पर ऊतकों को पर्याप्त मात्रा में प्राणवायु प्राप्त होती है।