देहरादून – मंगलवार का दिन उत्तराखण्ड के स्वर्णिम इतिहास में दर्ज हो गया है। आज समान नागरिक संहिता (UCC) का अधिनयम (Bill) विधानसभा के पटल पर रख दिया गया। सरकार के इस कदम के बाद उत्तराखण्ड देश का पहला राज्य बन गया है जहां यूसीसी को लागू करने की दिशा में ठोस पहल की गई है। चूंकि राज्य की धामी सरकार को स्पष्ट बहुमत प्राप्त है लिहाजा इस बिल का सदन में पारित होना तय माना जा रहा है। संवैधानिक जरूरत पड़ी तो इस कानून को लागू करने से पहले अनुमोदन के लिए राष्ट्रपति के भेजा जाएगा।
लेकिन, वहां भी इसकी मंजूरी में कोई अड़चन नहीं आएगी क्योंकि तमाम परिस्थितियां मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की मंशा के अनुकूल हैं।आखरिकार मंगलवार को वो दिन आ ही गया जिसका उत्तराखण्ड ही नहीं बल्कि देश का एक बड़ा वर्ग बेसब्री से इंतजार कर रहा था। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने वायदे के अनुरूप देवभूमि में यूसीसी को लागू करने की ओर निर्णायक कदम उठा दिया। पूर्वाह्न तकरीबन 11 बजे मुख्यमंत्री स्वयं यूसीसी के ड्राफ्ट की प्रति लेकर विधानसभा की कार्यवाही में भाग लेने पहुंचे। माथे पर तिलक, सफेद कुर्ता पैजामा, नारंगी रंग का वास्कट और गले में मफलर पहने धामी आत्मविश्वास से लबरेज दिखे। उनके के चेहरे पर संतुष्टि का भाव भी था। हो भी क्यों न ! वह 2022 के विधानसभा चुनाव से ऐनपूर्व जनता से किया वायदा पूरा करने जो जा रहे थे। समान नागरिक संहिता (UCC) के रूप में एक ऐसा कानून जो जाति से परे, धर्म से परे, यहां तक कि आप स्त्री हैं या पुरुष, इससे भी परे होगा। जिस कानून में आम और खास का भेद नहीं होगा। यानि जो सभी तय लिए एक समान होगा।
अधिनियम में जहां एक ओर विवाह, तलाक और विवाह की शून्यता के पंजीकरण के लिए सुगम एवं सरल प्रक्रिया बनाई गई है। सम्बंधित दम्पती और अधिकारियों की भी जिम्मेदारी व जवाबदेही तय की गई है। यदि कोई नागरिक विवाह का पंजीकरण करने में अनदेखी करता है या नियमों का पालन नहीं करता है तो उसके लिए अधिकतम 25000 के अर्थदण्ड का प्राविधान रखा गया है। साथ ही यदि उप निबंधक जानबूझकर संहिता में निहित कार्यवाही करने में विफल रहता है तो वह भी अधिकतम 25000 रुपये के अर्थदण्ड का अधिकारी होगा।विवाह, तलाक एवं विवाह की शून्यता के पंजीकरण के लिए एक सरकारी तंत्र बनाया जाएगा। जिसमें महा निबंधक सचिव स्तर, निबंधक उपजिलाधिकारी एवं उप निबंधक राज्य के अधिसूचित अधिकारी होंगे। नागरिकों के पास सूचना का अधिकार की तर्ज पर रजिस्ट्रेशन को लेकर अपील का अधिकार भी होगा। निबंधक एवं महा निबंधक दो अपीलीय स्तर के अधिकारी होंगे। साथ ही हर स्तर पर पंजिका का रखरखाव किया जाएगा। ताकि पारदर्शिता बनी रहे। अपील के लिए समयबद्ध समय सीमा भी तय की गई है, ताकि प्रक्रिया में अनावश्यक देरी न हो।
संहिता में दाम्पत्य अधिकारों को सरुक्षित बनाने के हर संभव प्राविधान किए गए हैं। साथ ही जो महर, प्रभूत, स्त्रीधन या कोई अन्य सम्पत्ति जो पत्नी को उपहार स्वरूप दी गई है, वह भरण पोषण के दावे में सम्मिलित नहीं होकर अतिरिक्त होगी। 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे की अभिरक्षा सामान्यत माता के पास रहेगी। संहिता में बच्चों की अभिरक्षा के अन्तर्गत बच्चों का हित सर्वोत्तम एवं कल्याण सर्वोपरि होगा। कोई विवाद होने पर दम्पती के मेल मिलाप के लिए न्यायालय हरसंभव समुचित प्रयास करेंगे।
शून्य एवं शून्यीकरण विवाह के लिए नियम बनाए गए हैं। विवाह विच्छेद के लिए किसी भी पक्ष को मारकर्म, क्रूरता, कम से कम दो वर्ष तक बिना युक्तियुक्त कारण से अलगाव, धर्म परिवर्तन, विकृत चित, निरन्तर मानसिक विकार, संचारी यौन रोग, लगातार 7 वर्ष तक किसी पक्ष के जीवित रहने की सूचना नहीं होने का आधार लिया गया है। विवाह विच्छेदन की कार्यवाही अनुतोष एवं आपसी सहमति से ही जा सकेगी। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि किसी भी प्रथा, रूढ़ि परम्परा या किसी पक्षकार को किसी व्यक्तिगत विधि या अधिनियम के अनुसार विवाह विच्छेदन (तलाक) नहीं हो सकेगा। इस संहिता के लागू होने के बाद संहिता में प्राविधानित प्रक्रिया के अनुसार ही विवाह विच्छेदन होगा। पुरुष-महिला को तलाक देने के समान अधिकार होंगे। लिव-इन रिलेशनशिप डिक्लेयर करना जरूरी होगा। लिव इन रजिस्ट्रेशन नहीं कराने पर 6 माह की सजा होगी। लिव-इन में पैदा बच्चों को संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा।
उम्मीद की जा रही है कि यह समान नागरिक संहिता उत्तराखण्ड के मध्य एक प्रगतिवादी, लोकप्रिय एवं सर्ववर्ग ग्राही संहिता साबित होगी। यह संहिता उत्तराखण्ड के नागरिकों के उच्च मानसिक स्तर का द्योतक होगी तथा राज्य के विकास में एक मील का पत्थर साबित होगी।