मणिपूर चक्र (अधिजठर जाल या सौर जाल बनाम पाचन तंत्र)
देहरादून – मणिपूर चक्र इसका स्थान नाभिमूल है। यकृत् एवं आँत इत्यादि सम्पूर्ण पाचन तन्त्र एवं अग्न्याशय आदि को यही चक्र शक्ति प्रदान करता है।
योगदर्शन में ‘नाभिचक्रे कायव्यूहज्ञानम्’ सूत्र द्वारा नाभिचक्र में ध्यान करने पर शरीरव्यूहज्ञान, अर्थात् शरीर के अवयवों के सन्निवेश का ज्ञान होना फल बतलाया है।
इस चक्र के जागृत होने पर मधुमेह, कब्ज़, अपच, गैस आदि सभी पाचन की विकृतियाँ भी दूर हो जाती हैं।
प्रारम्भ में मणिपूर चक्र की स्थिति है। यह नाभि के पीछे है। इस चक्र में (1) आमाशय, (2) यकृत्, (3) प्लीहा, (4) पैन्क्रियाज एवं (5) पक्वाशय सम्मिलित हैं।